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Friday, December 5, 2025
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दिल्ली में आज कृत्रिम बारिश का प्रयोग: स्मॉग हटाने के लिए होगी ‘क्लाउड सीडिंग’

वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग तभी प्रभावी होती है जब वातावरण में नमी (humidity) 50% से अधिक हो। पिछले प्रयास असफल रहे थे क्योंकि उस समय नमी केवल 20% थी।

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दिल्ली की जहरीली हवा और धुंध भरे आसमान के बीच आज राजधानी ने विज्ञान से उम्मीद लगाई है। प्रदूषण से राहत पाने के लिए आज क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के ज़रिए कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इस महत्वाकांक्षी प्रयोग की सफलता अब बारिश पर निर्भर है। क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन (Weather Modification) तकनीक है, जिसमें बादलों के भीतर सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या पोटैशियम आयोडाइड जैसे कण छोड़े जाते हैं। ये कण संघनन केंद्र (condensation nuclei) का काम करते हैं, जिससे पानी की बूंदें बनती हैं और बारिश होती है। सरल शब्दों में आपको पहले से बादल चाहिए। फिर उनमें ‘बीज’ डालकर उन्हें बरसने के लिए प्रेरित किया जाता है।

दिल्ली जैसे प्रदूषित शहरों में इसका उद्देश्य दोहरा होता है बरसात बढ़ाना, ताकि धूल और प्रदूषक कण नीचे बैठ जाएँ और हवा को साफ करना, जिससे अस्थायी तौर पर वायु गुणवत्ता में सुधार हो।

इस परियोजना का नेतृत्व IIT कानपुर कर रहा है। संस्थान के अनुसार, जैसे ही कानपुर का मौसम साफ होता है, वहां से Cessna विमान उड़ान भरेगा। IIT कानपुर ने बताया, “आज दोपहर 12:30 बजे विमान तैयार रहेगा। अगर उड़ान सफल रही, तो दिल्ली में क्लाउड सीडिंग आज ही की जाएगी।” फिलहाल कानपुर में दृश्यता लगभग 2000 मीटर है, जबकि विमान संचालन के लिए 5000 मीटर दृश्यता की जरूरत है। दिल्ली में भी दृश्यता अभी कम है। जैसे ही मौसम साफ होगा, विमान IIT कानपुर के एयरस्ट्रिप से उड़ान भरेगा और बादलों में रसायन छोड़ेगा।

दिल्ली में यह परियोजना तैयार है, लेकिन इसकी सफलता अब भी अनिश्चित है। वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग तभी प्रभावी होती है जब वातावरण में नमी (humidity) 50% से अधिक हो। पिछले प्रयास असफल रहे थे क्योंकि उस समय नमी केवल 20% थी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रदूषण का स्थायी समाधान नहीं है। यह केवल अस्थायी राहत दे सकता है। जब तक वाहनों, उद्योगों और पराली जलाने से होने वाले उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगती, तब तक हवा दोबारा प्रदूषित हो जाएगी।

विश्व स्तर पर भी क्लाउड सीडिंग के परिणाम मिश्रित रहे हैं। कई बार इसमें बारिश में केवल मामूली वृद्धि दर्ज की गई, और यह तय कर पाना मुश्किल रहा कि वह बारिश वास्तव में सीडिंग के कारण हुई या प्राकृतिक रूप से।

अगर मौसम साथ दे तो दिल्ली का यह प्रयोग देश के लिए एक वैज्ञानिक मील का पत्थर साबित हो सकता है। भारत अब पर्यावरण संकटों से निपटने के लिए विज्ञान और नवाचार पर भरोसा कर रहा है। हालाँकि विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि क्लाउड सीडिंग एक आपात उपाय मात्र है, न कि समाधान।

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