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Friday, December 26, 2025
होमन्यूज़ अपडेटनिचली अदालतों में जज बनने के लिए 3 साल की वकालत अनिवार्य

निचली अदालतों में जज बनने के लिए 3 साल की वकालत अनिवार्य

प्रमोशन कोटा बढ़ा

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देश की न्यायपालिका से जुड़ी एक अहम सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति और पदोन्नति को लेकर महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सिविल जज (जूनियर डिवीजन) बनने के लिए अब न्यूनतम तीन साल की वकालत अनिवार्य होगी। इसके साथ ही, सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के लिए विभागीय परीक्षा के जरिए पदोन्नति का कोटा 10% से बढ़ाकर 25% किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सिविल जज जूनियर डिवीजन की परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों के पास बार में कम से कम तीन साल का व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए। इस अनुभव की पुष्टि बार में 10 साल की वकालत कर चुके अधिवक्ता द्वारा की जानी अनिवार्य होगी। इसके अलावा, जो उम्मीदवार कानून के छात्र रहते हुए या बाद में लॉ क्लर्क के तौर पर कार्य कर चुके हैं, उस अवधि को भी उनके अनुभव में जोड़ा जाएगा।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चयनित उम्मीदवारों को अदालत में कार्यभार संभालने से पहले एक वर्ष का अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि वे न्यायिक प्रक्रिया और कोर्ट कार्यवाही को बेहतर तरीके से समझ सकें। हालांकि, वे राज्य जहां पहले से भर्ती प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, वहां यह प्रावधान लागू नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और हाई कोर्ट को निर्देश दिए हैं कि वे सेवा नियमों में संशोधन करें और सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के लिए विभागीय परीक्षा के जरिए मिलने वाले प्रमोशन कोटे को 10% से बढ़ाकर 25% किया जाए। इससे निचली न्यायपालिका में काम कर रहे कर्मठ अधिकारियों को बेहतर अवसर मिल सकेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से उन नियुक्तियों और चयन प्रक्रियाओं को भी नई दिशा मिलेगी, जो इस विषय पर चल रही सुनवाई के कारण रुकी हुई थीं। अब ये प्रक्रियाएं संशोधित नियमों के अनुरूप आगे बढ़ सकेंगी।

इससे एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए ‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना लागू करने का आदेश दिया था। चीफ जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि भले ही किसी जज की नियुक्ति का स्रोत कुछ भी रहा हो — चाहे वकील हों या जिला न्यायपालिका से आए हों — उन्हें प्रति वर्ष न्यूनतम ₹13.65 लाख पेंशन दी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के ये दोनों फैसले न्यायिक प्रणाली में अनुभव, गुणवत्ता और पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर माने जा रहे हैं। इससे न सिर्फ योग्य उम्मीदवारों को न्यायपालिका में आने का अवसर मिलेगा, बल्कि पहले से सेवा में लगे कर्मियों को भी आगे बढ़ने का समान अवसर प्राप्त होगा।

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