देश की प्रमुख शराब निर्माता कंपनी रेडिको खेतान ने अपने नए व्हिस्की ब्रांड ‘त्रिकाल’ को भारी विरोध के बाद बाजार से वापस लेने की घोषणा की है। यह फैसला धार्मिक संगठनों, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं की तीखी आलोचना के बाद लिया गया, जिन्होंने आरोप लगाया कि ‘त्रिकाल’ नाम और उसके प्रचार में प्रयुक्त प्रतीक हिंदू धार्मिक भावनाओं को आहत करते हैं।
कंपनी की ओर से बुधवार को जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया, “हम सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रूप से एक गौरवशाली भारतीय कंपनी हैं… हम हर भारतीय की भावनाओं को अपने दिल के करीब रखते हैं और हमारी साझा पहचान के लिए बोलने वाली हर आवाज़ का सम्मान करते हैं।”
रेडिको खेतान ने कहा कि एक जिम्मेदार और संवेदनशील संगठन होने के नाते, आंतरिक समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया गया कि ब्रांड को तुरंत प्रभाव से बाजार से हटा लिया जाएगा। कंपनी ने ‘त्रिकाल’ नाम के पीछे की प्रेरणा को समझाते हुए बताया कि यह शब्द संस्कृत से लिया गया है और इसका अर्थ है – अतीत, वर्तमान और भविष्य। उनके अनुसार यह नाम भारत की कालातीत विरासत, प्रगति और सांस्कृतिक समर्पण को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से चुना गया था।
हालांकि, बोतल पर लगे नीले-हरे लेबल और उस पर बनी एक बंद आंखों वाले चेहरे की रेखाचित्रीय आकृति, जिसमें माथे पर चक्र बना था, को कई लोगों ने भगवान शिव की तीसरी आंख से जोड़ते हुए धार्मिक अनादर करार दिया।
कंपनी के बयान में यह भी स्पष्ट किया गया कि यह फैसला सिर्फ व्यावसायिक नहीं बल्कि नैतिक स्तर पर भी लिया गया है। बयान में कहा गया “यह सम्मान, प्रतिबिंब और हमारे लोगों व देश की भावनाओं का सम्मान करने की हमारी अटूट प्रतिबद्धता का संकेत है।”
रेडिको खेतान ने ‘त्रिकाल’ ब्रांड के तहत 3,500 से 4,500 रुपये की कीमत वाली सिंगल माल्ट व्हिस्की को हाल ही में लॉन्च किया था। इसके तुरंत बाद ही सनातन धर्म से जुड़े संगठनों, धार्मिक नेताओं और सोशल मीडिया यूज़र्स ने नाम व पैकेजिंग को लेकर कड़ा ऐतराज जताया।
कई राजनीतिक हस्तियों ने भी इस पर बयान दिए और धार्मिक प्रतीकों के व्यावसायिक उपयोग की आलोचना की। सोशल मीडिया पर #TrikalInsultToFaith जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे, जिससे जनमत का दबाव और बढ़ गया।
रेडिको खेतान का यह कदम ऐसे समय में आया है जब कंपनियों पर ब्रांडिंग में सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनशीलता बरतने की अपेक्षा और बढ़ गई है। यह घटना भारत में कॉर्पोरेट नैतिकता और सांस्कृतिक चेतना के बीच संतुलन को लेकर एक बड़ा उदाहरण बन सकती है।
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