उत्तर प्रदेश में डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने जमीनी स्तर पर संगठन विस्तार की रणनीति तेज कर दी है। पार्टी की लगभग 1600 टीमें गांवों में सक्रिय हैं, जो पोलिंग बूथ और सेक्टर कमेटियों का गठन कर रही हैं। इनका मकसद ग्रामीण जनता से सीधे संवाद बनाकर बसपा की नीतियों को समझाना और विपक्ष की कथित साजिशों के प्रति उन्हें जागरूक करना है।
पुराने फॉर्मूले पर नए सिरे से भरोसा: पार्टी अध्यक्ष मायावती के निर्देश पर ‘भाईचारा कमेटी’ और ‘ओबीसी कमेटी’ को फिर से सक्रिय किया गया है। पार्टी मानती है कि वर्ष 2007 की चुनावी जीत इन्हीं कमेटियों की बदौलत हुई थी, जब विभिन्न वर्गों के लोगों को जोड़कर सामाजिक गठबंधन खड़ा किया गया था। अब उसी रणनीति को अपनाते हुए हर विधानसभा क्षेत्र में चार-चार टीमों को नियुक्त किया गया है।
कार्यकर्ता केंद्रित संगठन: बसपा नेताओं का कहना है कि पार्टी हमेशा से कार्यकर्ताओं की ताकत पर चलती रही है। यही कारण है कि पार्टी ने चार बार सत्ता में रहते हुए गुमनाम चेहरों को भी राजनीति में पहचान दिलाई। इसी सोच के साथ अब गांवों में बूथ स्तर तक कमेटियों का विस्तार हो रहा है।
तराई और अवध में विशेष फोकस: फिलहाल बसपा का फोकस तराई और अवध क्षेत्रों में संगठन विस्तार पर है। पार्टी मानती है कि सामाजिक संतुलन बनाए रखते हुए, निचले स्तर से ऊपर तक संगठन को मजबूत किया जा सकता है।
आकाश आनंद की बढ़ती भूमिका: सूत्रों के अनुसार, बसपा के चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद वर्तमान में बिहार चुनाव की तैयारियों में लगे हुए हैं। लेकिन बिहार के बाद उनकी सक्रियता उत्तर प्रदेश में भी बढ़ सकती है। अभी यूपी और उत्तराखंड के मामलों की समीक्षा और निर्णय खुद मायावती ले रही हैं।
‘नेता नहीं, कार्यकर्ता बनाते हैं बसपा को’: पार्टी नेताओं का मानना है कि बसपा एक ऐसी “राजनीतिक नर्सरी” है जो नेता तैयार करती है। लेकिन अफसोस यह भी जताया गया कि कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर निजी लाभ या पारिवारिक राजनीति के कारण अन्य दलों में चले गए। फिर भी पार्टी की नींव आज भी कार्यकर्ताओं पर टिकी है।
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