कनाडाई प्रधानमंत्री पहुंचे स्वामीनारायण मंदिर, हिंदुओं पर होने वाले नस्लवादी हमलों पर चुप्पी!

प्रधानमंत्री की यह आध्यात्मिक यात्रा निश्चित रूप से सांस्कृतिक कूटनीति का एक अहम संकेत है, लेकिन तब तक अधूरी मानी जाएगी जब तक कनाडा की सरकार अपने देश में हिंदू धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं देती।

कनाडाई प्रधानमंत्री पहुंचे स्वामीनारायण मंदिर, हिंदुओं पर होने वाले नस्लवादी हमलों पर चुप्पी!

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कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने श्रीराम नवमी और श्री स्वामीनारायण जयंती के पावन पर्व पर टोरंटो स्थित बीएपीएस श्री स्वामीनारायण मंदिर में भक्ति और श्रद्धा से परिपूर्ण आध्यात्मिक यात्रा की। यह यात्रा भारत-कनाडा सांस्कृतिक संबंधों के दृष्टिकोण से अहम मानी जा रही है। लेकिन प्रधानमंत्री की इस उपस्थिति ने बीएपीएस मंदिर पर बीते समय में हुए खालिस्तानी हमलों पर कनाडाई सरकार की निष्क्रियता और उदासीन रवैये को लेकर कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं।

प्रधानमंत्री कार्नी का स्वागत मंदिर प्रबंधन और बीएपीएस संतों ने पारंपरिक वैदिक रीति-रिवाजों से किया। उन्होंने नीलकंठवर्णी महाराज का अभिषेक कर विश्व शांति और सद्भावना की प्रार्थना की। मंदिर की भव्यता, नक्काशी और आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रधानमंत्री अभिभूत नजर आए। उन्हें परम पूज्य महंत स्वामी महाराज का आशीर्वाद-पत्र और ‘सत्संग दीक्षा’ ग्रंथ की विशेष प्रति भी भेंट की गई।

प्रधानमंत्री ने अतिथि-पुस्तिका में लिखा, “आपकी प्रार्थनाओं और प्रेमपूर्ण सत्कार के प्रति मैं अपनी गहन कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। मैं पूरी निष्ठा और प्रतिबद्धता से यह संकल्प करता हूँ कि कनाडा, भारत और समस्त विश्व में शांति, एकता, सौहार्द और समृद्धि को प्रोत्साहित करता रहूंगा।”

हालांकि प्रधानमंत्री की मंदिर यात्रा को एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन बीते महीनों में बीएपीएस मंदिर सहित अन्य हिंदू धार्मिक स्थलों पर खालिस्तानी तत्वों द्वारा किए गए हमलों को लेकर कनाडाई सरकार की निष्क्रियता आज भी समुदाय के भीतर आक्रोश का विषय बनी हुई है।

टोरंटो और अन्य शहरों में बीएपीएस मंदिर पर भित्ति लेखन, तोड़फोड़ और धमकी भरे पोस्टर चिपकाने जैसी घटनाओं के बावजूद न तो कठोर कार्रवाई हुई, न ही खालिस्तानी संगठनों पर कोई स्पष्ट प्रतिबंध लगाया गया। कई बार हिंदू समुदाय ने यह शिकायत की कि उनकी धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर निशाना बनाया गया, लेकिन सरकार ने इन्हें “फ्री स्पीच” के नाम पर नजरअंदाज किया। साथ ही पिछली दिपावली पर हिंदू समुदाय पर खालिस्तानियों द्वारा किए गए हमलों में कनाडाई सरकार की पुलिस ने पीड़ित हिंदुओ के खिलाफ कारवाई कर यही रेखांकित किया की वे खालिस्तान अलगाववाद के समर्थक है।

कनाडाई लिबरल पार्टी का यह रवैय्या कोई नहीं बात नहीं है। कनाडा में आतंकवाद से पीड़ित इजरायल के खिलाफ भी कई कारनामों को अंजाम दिया गया है, जिसमें नाज़ी सैनिक को संसद में बुलाकर उसे सन्मान देना भी शामिल है। वहीं नए प्रधानमंत्री की मंदिर यात्रा के दौरान सरकार द्वारा इन गंभीर घटनाओं पर कोई स्पष्ट माफ़ी या ठोस प्रतिक्रिया न देना, कनाडा में हिंदू समुदाय की सुरक्षा और सम्मान को लेकर एक बार फिर चिंता खड़ी कर देता है।

प्रधानमंत्री ने मंदिर की समाजसेवा, युवाओं के मार्गदर्शन और अंतरधार्मिक सौहार्द में योगदान की प्रशंसा करते हुए बीएपीएस को “कनाडा की राष्ट्रीय एकता और शांति का प्रतीक” बताया। लेकिन सवाल यह भी है कि जब यही मंदिर बार-बार हमलों का शिकार बना, तब क्या सरकार ने उसी गंभीरता से प्रतिक्रिया दी?

प्रधानमंत्री की यह आध्यात्मिक यात्रा निश्चित रूप से सांस्कृतिक कूटनीति का एक अहम संकेत है, लेकिन तब तक अधूरी मानी जाएगी जब तक कनाडा की सरकार अपने देश में हिंदू धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं देती। कनाडा में चुनाव सिर पर है इसीलिए केवल लेबर पार्टी में लोकप्रिय उम्मीदवार मार्क कार्नी मतों के गठजोड़ के लिए मंदिर में दौरे कर रहें है ऐसा प्रतीत होता है। अब समय आ गया है की, हिंदू समुदाय लेबर पार्टी के खालिस्तान समर्थन और भारत विरोधी नस्लवादी हमलों पर सवाल पूछे।

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