साफ है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव (विधानसभा चुनाव नतीजे) में कांग्रेस की बुरी हार हुई है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को जनता ने उम्मीदों के बावजूद नकार दिया है| इसलिए 1980 के बाद पहली बार उत्तर भारत के हिंदी बेल्ट में कांग्रेस सत्ता में नहीं होगी|अत: यह स्पष्ट है कि कांग्रेस हिन्दी पट्टी से ‘बाहर’ हो गयी है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है| पार्टी की आंतरिक रिपोर्ट में इन राज्यों में जीत का दावा किया गया है| खुद राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में 135 सीटें मिलने का दावा किया| वहीं, कई सर्वे में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की मजबूत स्थिति दिखाई गई|
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक परंपरा के मुताबिक पार्टी हार का जायजा लेकर लोकसभा चुनाव की तैयारी करेगी, लेकिन चुनावी हार की समीक्षा का मुद्दा कांग्रेस के लिए नया नहीं है|राहुल गांधी ने पिछले 9 साल में 12 हार के बाद जायजा लिया था| राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि हार के लिए क्षेत्रीय नेताओं से ज्यादा कांग्रेस आलाकमान जिम्मेदार है|
प्रचार को लेकर कांग्रेस असमंजस में रही: कांग्रेस आलाकमान, खासकर मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी, हिंदी पट्टी के राज्यों में चुनाव से पहले गुटबाजी को रोक नहीं सके। छत्तीसगढ़ में चुनाव से कुछ महीने पहले पार्टी ने टीएस सिंहदेव का राजनीतिक कद बढ़ा दिया है, इसलिए भूपेश बघेल गुट के बैकफुट पर जाने की चर्चा थी|
प्रचार को लेकर कांग्रेस असमंजस में रही: कांग्रेस आलाकमान, खासकर मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी, हिंदी पट्टी के राज्यों में चुनाव से पहले गुटबाजी को रोक नहीं सके। छत्तीसगढ़ में चुनाव से कुछ महीने पहले पार्टी ने टीएस सिंहदेव का राजनीतिक कद बढ़ा दिया है, इसलिए भूपेश बघेल गुट के बैकफुट पर जाने की चर्चा थी|
चुनाव से कुछ दिन पहले पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं करने का फैसला किया| इसके बाद पार्टी को अपनी पूरी प्रचार रणनीति बदलनी पड़ी| छत्तीसगढ़ में चुनाव से पहले कांग्रेस ने ‘भूपेश है तो भरोसा है’ अभियान चलाया था, जिसे कई लोगों ने सराहा था, लेकिन पार्टी आलाकमान के फैसले के बाद इस नारे को बदल दिया गया| पार्टी ‘कांग्रेस है तो भरोसा है’ के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी| समय कम होने के कारण यह घोषणा लोगों पर असर नहीं डाल सकी|
राजस्थान में भी कांग्रेस अंदरूनी गुटबाजी खत्म नहीं कर पाई| सचिन पायलट ने अशोक गहलोत समर्थक नेताओं की कई सीटों पर प्रचार नहीं किया| इनमें दानिश अबरार की सवाई माधोपुर और चेतन डूडी की डिंडवाना प्रमुख हैं। राजस्थान में कांग्रेस स्वतंत्र रूप से अशोक गहलोत और सचिन पायलट की कोई संयुक्त रैली आयोजित नहीं कर सकी|
टिकट वितरण में देरी से गलत संदेश: मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने चुनाव से 3 महीने पहले टिकट जारी कर दिए, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ऐसा करने में विफल रहा| कांग्रेस की ओर से संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने दावा किया था कि पार्टी सितंबर तक सभी सीटों पर टिकटों की घोषणा कर देगी, लेकिन यह दावा भी झूठा निकला|
कांग्रेस में नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिनों तक टिकट बंटवारे को लेकर घमासान मचा रहा| कई बड़े नेताओं के टिकट कटने की चर्चा थी| मध्य प्रदेश में टिकट बंटवारे को लेकर दिग्विजय और कमलनाथ आमने-सामने आ गए हैं| राजस्थान में टिकट बंटवारे के आखिरी चरण में कांग्रेस चुनाव समिति की बैठक से राहुल गांधी गायब रहे| टिकट बंटवारे की खबर से कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा,लेकिन हाईकमान यह नहीं समझ पाया कि इसका क्या असर हुआ|
चुनावी राज्यों में कांग्रेस का कमजोर निगरानी तंत्र: कांग्रेस ने चुनावों पर नजर रखने के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी, लेकिन वह पूरे चुनावी परिदृश्य से गायब हो गये| राजस्थान में अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश में कमलनाथ नेता थे| कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, दोनों नेताओं ने आलाकमान से फ्री हैंड ले लिया है|
दोनों राज्यों में आलाकमान द्वारा नियुक्त किए गए लोग अशोक गहलोत और कमलनाथ की तुलना में बहुत कमजोर थे। सुखजिंदर रंधावा को राजस्थान में पार्टी प्रभारी बनाया गया| रंधावा अशोक गहलोत से काफी युवा नेता हैं| कमलनाथ के कनिष्ठ सुरजेवाला को पार्टी ने मध्य प्रदेश निरीक्षक का प्रभार भी दिया था। कांग्रेस आलाकमान मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी से गठबंधन चाहता था, लेकिन कमलनाथ की वजह से ऐसा नहीं हो सका| हाईकमान कमलनाथ पर दबाव बनाने में पूरी तरह विफल रहा|
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