दिल्ली चुनावों में कांग्रेस फिर से फेल, लेकीन अब दर्द नहीं होता।

दिल्ली चुनावों में कांग्रेस फिर से फेल, लेकीन अब दर्द नहीं होता।

Congress failed again in Delhi elections, but it doesn't hurt anymore.

कांग्रेस ने 1998 से 2013 तक लगातार 15 साल दिल्ली पर शासन किया, लेकिन उसके बाद 2013 के चुनावों में उसे केवल 8 सीटें ही मिलीं। उसके बाद से, कांग्रेस पार्टी ने 2015, 2020 और 2025 में हुए अगले 3 चुनावों में एक सीट भी नहीं जीत पाई है।

कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित 1998 से 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। हालांकि, अब उनके बेटे संदीप दीक्षित भी दिल्ली में अपनी हार रहें है। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी की भाजपा से हार के बाद शीला दीक्षित अब तक दिल्ली की सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाली नेता है।

कुछ एग्जिट पोल ने भविष्यवाणी की थी कि कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा में 1 से 2 सीटें मिल सकती हैं, जबकि परिणामों में दिल्ली ने कांग्रेस की झोली खाली रखना ही मुनासिब समझा। हालांकि देश की राजनीति में 60 साल से अधिक समय तक वर्चस्व में रही कांग्रेस अपने शीर्ष नेता राहुल के महिमंडन और चरित्र की छबि निर्माण करने में उलझी नज़र आती है।

पिछले दस वर्षों में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 3 लोकसभा और कइयों विधानसभा चुनावों को मिलाकर आज 90 चुनाव में मात खाई है, शायद इस चुनाव से कांग्रेस को कोई आशा भी नहीं थी, लेकीन कांग्रेस की अपनी जगह हड़प कर चुकी आम आदमी पार्टी दिल्ली से तड़ीपार हो ऐसी एक तमन्ना रही होगी, इसीलिए आज कांग्रेस के दफ्तरों में शर्मनाक हार के बाद भी जल्लोष और उत्साह का माहौल देखा। इस तीसरी शर्मनाक हार के बाद भी कांग्रेस को दर्द नहीं हुआ क्योंकि राहुल गाँधी के नेतृत्व में कोंग्रेसी दिल पत्थर हो चूका होगा, उसे चुनाव हारने की प्रैक्टिस हुई होगी। पिछली बार कोंग्रेसी नेता को झटका तब लगा जब कांग्रेस ने लोकसभा में 99 सीटें जीती। कुछ नेताओं ने तो नाच-नाच कर अपनी ख़ुशी जाहिर की थी।

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लोकसभा में हार के बावजूद कांग्रेस का सिस्टम इसी बात से खुश था की उन्होने 99 सीटें जीती और अपना बेस्ट दिया है। राहुल गांधी के नेतृत्व में 99 अगर कांग्रेस का बेस्ट है, और महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्यप्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर में कांग्रेस सरकार नहीं बना सकती तो फिर वो नेता जनता का लीडर या ‘जननायक’ कैसे माना जाए?

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