महाराष्ट्र सरकार द्वारा पहली कक्षा से हिंदी विषय को ऐच्छिक रूप से शामिल करने के निर्णय के बाद राज्य में विवाद छिड़ गया है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि हिंदी को अनिवार्य नहीं, बल्कि वैकल्पिक रखा गया है, फिर भी इस पर राजनीति गरम है।
राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने इस फैसले का तीखा विरोध किया और आंदोलन की चेतावनी दी। इसके बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी सरकार को चेतावनी दी कि अगर फैसला वापस नहीं लिया गया तो वे सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे।
माकपा की इस धमकी पर भाजपा विधायक अतुल भातखळकर ने करारा पलटवार किया। उन्होंने कहा कि जिनकी वैचारिक निष्ठा रूस और चीन के प्रति है, उन्हें महाराष्ट्र की त्रिभाषा नीति पर बोलने या सड़कों पर आंदोलन करने की बात नहीं करनी चाहिए। यह उनके योग्य नहीं है।
माकपा के राज्य सचिव डॉ. अजित नवले ने कहा कि पहली से पांचवीं कक्षा तक हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ माकपा, बुद्धिजीवी और अन्य दलों ने आवाज उठाई थी। शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने तब आश्वासन दिया था कि जबरदस्ती नहीं की जाएगी, लेकिन अब पिछले दरवाजे से “20 छात्रों की शर्त” लगाकर फिर से हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है।
भाषा सलाहकार समिति और शिक्षा संचालन समिति के कई सदस्यों ने भी इस पर आपत्ति जताई है। माकपा ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने यह निर्णय वापस नहीं लिया तो वे समविचारी दलों, लेखकों, कवियों और बुद्धिजीवियों को साथ लेकर बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे।
अंत में भातखळकर ने ट्वीट कर कहा कि माकपा को हिंदी से परेशानी है, लेकिन अगर राज्य में हिंदी की जगह रूसी या चीनी भाषा सिखाई जाती तो उन्हें शायद कोई आपत्ति नहीं होती।
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