बिहार में चल रहे Special Intensive Revision (SIR) को लेकर उठे विवादों के बीच चुनाव आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया है कि मतदाता सूची में नाम न होना नागरिकता समाप्त करने का आधार नहीं हो सकता। विपक्ष के आरोपों के जवाब में चुनाव आयोग ने 88 पन्नों का हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट किया कि SIR महज एक मतदाता सत्यापन प्रक्रिया है, न कि “नागरिकता जांच अभियान” जैसा कि कुछ दल दावा कर रहे हैं।
चुनाव आयोग ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदान का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए नागरिकता का प्रमाण मांगना उसका वैधानिक अधिकार है। आयोग ने कहा, “कोई भी संसदीय कानून ECI के इस अधिकार को खत्म नहीं कर सकता।”
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई की सुनवाई में कहा था कि नागरिकता निर्धारित करने का अधिकार गृह मंत्रालय के पास है। इसके साथ ही कोर्ट ने बिहार में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले SIR की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए। हालांकि, अदालत ने इस प्रक्रिया को रोकने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने ECI से आधार, वोटर ID और राशन कार्ड को मान्य दस्तावेजों की सूची में शामिल करने पर विचार करने को कहा था। चुनाव आयोग ने अपने जवाब में कहा कि आधार कार्ड केवल पहचान का प्रमाण है, लेकिन यह अकेले नागरिकता या मतदाता बनने की पात्रता नहीं दर्शाता। हलफनामे में कहा गया, “आधार अनुच्छेद 326 के तहत पात्रता की जांच में मदद नहीं करता, लेकिन यह अन्य दस्तावेज़ों के साथ पूरक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है।” ECI ने कहा कि सूची में शामिल 11 दस्तावेजों में से अधिकांश बिहार की आबादी के पास पहले से ही मौजूद हैं।
आयोग ने जानकारी दी कि 18 जुलाई तक बिहार के लगभग 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 90.12% से सत्यापन फॉर्म प्राप्त हो चुके हैं। मृत व्यक्तियों और स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं को भी जोड़ा जाए तो यह कवरेज 94.68% तक पहुंचती है। मात्र 0.01% मतदाता ऐसे हैं जिन्हें BLO (Booth Level Officer) की कई बार कोशिशों के बाद भी नहीं पाया जा सका। फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि 25 जुलाई तय की गई है।
ECI ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि कोई अयोग्य व्यक्ति मतदाता सूची में शामिल न हो और कोई योग्य व्यक्ति इससे बाहर न रहे। आयोग ने आरोप लगाया कि याचिकाओं का आधार “अविश्वसनीय समाचार रिपोर्ट्स” हैं और इन्हें भ्रामक तरीके से पेश किया गया है। इसके अलावा आयोग ने यह भी खुलासा किया कि याचिकाकर्ता जिन राजनीतिक दलों से जुड़े हैं, वे खुद इस पुनरीक्षण प्रक्रिया में सक्रिय सहयोग दे रहे हैं, लेकिन इसे अपने हलफनामे में छुपा लिया गया।
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