कर्नाटक में आदिवासी कल्याण निधि से जुड़ा बहुचर्चित घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बुधवार(11 जून) को महर्षि वाल्मीकि जनजाति कल्याण बोर्ड से संबंधित धनशोधन मामले में कांग्रेस के सांसद ई. तुकाराम और तीन विधायकों के ठिकानों पर छापेमारी की।
यह छापेमारी बेल्लारी और बेंगलुरु के आठ स्थानों पर एक साथ की गई, जिनमें से पांच बेल्लारी और तीन बेंगलुरु में हैं। करीब 15 अधिकारियों की ईडी टीम ने बुधवार(11 जून) सुबह से ही कार्रवाई शुरू की। ईडी ने जिन कांग्रेस नेताओं के ठिकानों पर छापा मारा है, उनमें सांसद ई. तुकाराम, विधायक ना. रा. भरत रेड्डी, जे. एन. गणेश उर्फ कांपली गणेश, और पूर्व मंत्री बी. नागेंद्र के निजी सहायक गोवर्धन शामिल हैं। बी. नागेंद्र का बेंगलुरु स्थित कार्यालय भी ईडी की रडार पर है।
गौरतलब है कि बी. नागेंद्र को ईडी ने पहले ही 12 जुलाई 2024 को गिरफ्तार किया था। उन्हें करीब तीन महीने जेल में रहने के बाद जमानत मिली थी। गिरफ्तारी के बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। ईडी ने उन्हें इस 89.6 करोड़ रुपये के कथित घोटाले का मास्टरमाइंड बताया है।
ईडी की जांच में सामने आया है कि कर्नाटक महर्षि वाल्मीकि एसटी विकास निगम के खातों से 89.62 करोड़ रुपये आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के फर्जी खातों में ट्रांसफर किए गए। फिर इन पैसों को फर्जी संस्थाओं के जरिए घुमाकर मनी लॉन्ड्रिंग की गई। इस पूरे ऑपरेशन में बी. नागेंद्र के साथ 24 अन्य लोग भी शामिल बताए गए हैं।
इस घोटाले की परतें तब खुलीं जब निगम के लेखा परीक्षक पी. चंद्रशेखरन ने आत्महत्या कर ली। उनके सुसाइड नोट में घोटाले का ज़िक्र, उसे छुपाने के दबाव और राजनीतिक हस्तक्षेप की बातें लिखी थीं। उन्होंने एक कांग्रेस मंत्री को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया।
भाजपा ने इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। भाजपा का आरोप है कि वित्त विभाग सिद्धारमैया के अधीन है और उन्होंने इस घोटाले की “मंजूरी” दी थी। पार्टी ने घोटाले की राशि को 187 करोड़ रुपये बताया है। हालांकि, कांग्रेस सरकार द्वारा गठित SIT ने बी. नागेंद्र को क्लीन चिट देते हुए चार्जशीट में उनका नाम नहीं जोड़ा। लेकिन ईडी ने कर्नाटक पुलिस और सीबीआई की FIR के आधार पर अपनी स्वतंत्र जांच शुरू की थी।
इस मामले में ईडी की ताज़ा कार्रवाई ने कर्नाटक की राजनीति में फिर से उबाल ला दिया है। जहां कांग्रेस इसे राजनीतिक प्रतिशोध बता रही है, वहीं भाजपा इसे भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करार दे रही है। आने वाले दिनों में यह मामला राज्य की सियासत में बड़ा मुद्दा बन सकता है।
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