अमेरिका रूस से तेल खरीदने को लेकर भारतीय निर्यात पर पाखंडपूर्ण 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने के कुछ ही सप्ताह बाद मंगलवार (16 सितंबर) को भारत और अमेरिका एक बार फिर व्यापार समझौते को लेकर बातचीत की मेज पर लौटें हैं। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के नई दिल्ली पहुंचने के साथ ही यह वार्ता शुरू हुई। इस बैठक को बीतें कुछ सप्ताह से वॉशिंगटन के कड़े रुख के बीच दोनों देशों के संबंधों में सुधार के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। जानकारों का मानना है कि ट्रम्प का सुर अब धीरे-धीरे नरम होता दिख रहा है और वे भारत से रिश्तों को बेहतर करने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
जानकारी के अनुसार, दिनभर चलने वाली इस बैठक में अमेरिका की ओर से दक्षिण एशिया के लिए ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव ब्रेंडन लिंच नेतृत्व कर रहे हैं, जबकि भारत की ओर से वाणिज्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी राजेश अग्रवाल चर्चा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसमें विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी सक्रिय रूप से शामिल हैं।
पिछले सप्ताह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत के साथ जल्द ही व्यापार समझौता होने की उम्मीद जताई थी। इसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यह बातचीत “भारत-अमेरिका साझेदारी की असीम संभावनाओं को उजागर करने का मार्ग प्रशस्त करेगी।”
इसी बीच, व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने सोमवार (15 सितंबर) को कहा था कि “टेर्रिफ के दबाव के कारण भारत अब बातचीत की मेज पर आ गया है।” हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि, दरअसल अमेरिकी अधिकारियों का दिल्ली आना इस बात का संकेत है कि भारत जैसे तेजी से उभरती और उसके 140 करोड़ उपभोक्ताओं के बड़े बाजार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता इस बात को वॉशिंग्टन समझ चूका है। साथ ही भारत जैसे विश्वासु सहभागी को छोड़कर खोना अमेरिकी भू-राजनीतिक गतिविधियों के लिए मुनासिब नहीं है।
हाल के हफ्तों में ट्रम्प ने भारतीय वस्तुओं पर पहले से लगे 25 प्रतिशत शुल्क पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त दंड भी लगा दिया था। इसके बाद नवारो ने भारत पर रूस-यूक्रेन युद्ध से आर्थिक लाभ उठाने का आरोप लगाते हुए नई दिल्ली को क्रेमलिन का “लॉन्ड्रोमैट” तक करार कह दिया, जिससे भारत और अमेरिका के रिश्ते बिखरने की कगार पर आए।
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