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I.N.D.I.A के कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या … 

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एक माह पहले इंडिया गठबंधन के नेताओं ने बड़े बड़े दावे किये थे। अब इस गठबंधन में दरार आ गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जहां कांग्रेस पर हमला बोला। वहीं अरविंद केजरीवाल ने भी कांग्रेस को निशाने पर लिया है। इस गठबंधन में कुल 28 दल शामिल है। कांग्रेस को छोड़ दे तो लगभग सभी राजनीति दल कवल अपने घर में ही मजबूत है, बाहर के राज्यों में इनका कोई नाम लेने वाला नहीं है। गठबंधन में शामिल दल एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। इंडिया गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर कितना कामयाब होगा ? दरअसल, सभी राजनीतिक दलों का कहना है कि इंडिया गठबंधन विधानसभा चुनाव के लिए नहीं किया गया है, बल्कि, लोकसभा चुनाव के लिए बना है।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद से कांग्रेस इसमें व्यस्त है। यह बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहकर कांग्रेस की हवा निकाल दी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का पूरा ध्यान पांच राज्यों के चुनाव पर है। इंडिया गठबंधन में कोई काम नहीं हो रहा है। हालांकि, खबर यह भी है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने नीतीश कुमार को गठबंधन को लेकर फोन किया है। अब क्या बात हुई यह पता नहीं चल पाया है। वैसे, यह सभी जानते हैं कि विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए नीतीश कुमार ने ही शुरुआत की थी। लेकिन अब कांग्रेस ने इस गठबंधन को पूरी तरह से हाईजैक कर लिया। जहां पहले विपक्ष को जुटाने में नीतीश अगुआ बने हुए थे। अब पिछलग्गू हो गए हैं। इस गठबंधन का कांग्रेस के बिना काम ही नहीं चल रहा है। कई मुद्दों पर गठबंधन में मतभेद है, लेकिन इसके नेता बार बार कह रहे हैं कि हम सब एकजुट है। मगर ये सिर्फ बातें हैं। यानी “कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं, बातों का क्या, कोई किसी का नहीं ये झूठे… ” ।

नीतीश कुमार से पहले समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे पर बात नहीं बनने पर कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। उन्होंने शुक्रवार को भी कांग्रेस को धोखेबाज कहा। वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी शुक्रवार को ही छत्तीसगढ़ में चुनावी रैली में कहा कि कांग्रेस ने केवल देश को लूटा है। इतना ही नहीं, इसी दिन दिल्ली के कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने केजरीवाल पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि ईडी द्वारा दिए गए नोटिस से केजरीवाल डरे हुए हैं और जांच से भाग रहे हैं। इससे साफ़ हो जाता है कि भले ये दल पीएम मोदी का विजयरथ रोकने के लिए साथ आये हैं,लेकिन आपसी समन्वय का आभाव है।तो क्या ये बीजेपी का विजय रथ रोक पायेंगे? कोई कार्य करने के लिए आपसी समन्वय बहुत जरुरी है। लेकिन इंडिया गठबंधन में यह समन्वय दिखाई नहीं दे रहा है।

वैसे कई नेता कह रहे हैं कि यह गठबंधन राष्ट्रीय स्तर के लिए बना है। राज्य स्तर पर इसका इससे कोई लेना देना नहीं है। इसमें सीताराम येचुरी और ममता की रार खुलकर सामने आई है।  सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में मौजूदा सरकार लोकतंत्र विरोधी है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक चुनावों के पुरे सिस्टम को खराब कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के साथ रहेंगे लेकिन बंगाल में टीएमसी के साथ किसी तरह का गठबंधन नहीं हो सकता है।

ये तमाम दलों के बयान हैं। जो इंडिया गठबंधन में शामिल है। लेकिन उनमें आपसी सामंजस्य दिखाई नहीं दे रहा है। अब सवाल यह है कि इतने मतभेद के बाद भी इन दलों में एकता आ सकती है। भले ये दल आपसी एकता का दम भर रहे हैं,पर जनता के सामने एक एकता दिखा पाएंगे। इनके पोल को बीजेपी क्या नहीं खोलेगी? क्या जनता इतनी सच्चाई को नहीं जानती है।  सबसे बड़ी बात यह है कि बीजेपी जनता में इस बात का संदेश देगी कि ये दल  केवल अपने अपने स्वार्थ के लिए साथ आये हैं। इनका गठबंधन देशहित में नहीं है। क्या ये दल जनता को समझा पाएंगे कि वे बीजेपी के साथ एकजुट हैं ? बड़ा सवाल है। क्योंकि, जिस तरह से मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच जंग देखी गई है।

क्या यह कहा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी यूपी में कांग्रेस के लिए ज्यादा स्पेस देगी। मध्य प्रदेश में  लगभग 40 सीटों पर सपा चुनाव लड़ रही है। पांच सीटों पर जेडीयू लड़ रही है। इसका क्या चुनाव परिणाम पर असर नहीं होगा। यह बड़ा सवाल है। सवाल यह है कि क्या गठबंधन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उसके मन मुताबिक सपा सीट देने को तैयार होगी, अगर होगी तो क्या सपा और कांग्रेस के समर्थक एक दूसरे के उम्मीदवारों को वोट देंगे यह बड़ा सवाल है, जिसका जवाब इंडिया गठबंधन के दलों के भी पास नहीं है। यही सवाल पश्चिम बंगाल में भी खड़ा हो रहा है। क्या ममता बनर्जी वाम दल के लिए उनके मांगों के अनुसार सीट देने पर राजी होंगी ? क्या सीट बंटवारे के दौरान गठबंधन में किचकिच नहीं होगा।

सबसे बड़ा सवाल यह कि अगर पांच राज्यों में कांग्रेस जीत जाती है तो क्या ममता बनर्जी  बंगाल में, अखिलेश यादव यूपी में कांग्रेस के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें देंगे ? क्या ऐसा ही तमिलनाडु में भी होगा, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे त्याग करेंगे ? दोस्तों सवाल यह है कि जिस तरह से कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में अखिलेश यादव के साथ किया,क्या दूसरे दलों के साथ नहीं करेगी? सवाल अभी तक अनुत्तर हैं ? दो माह के बाद सब पता चल जाएगा की “यारी कितनी यारी है।


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