देश में बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता देते हुए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित कर बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिया गया है। बच्चों को स्कूल आने और उनको प्रोत्साहित करने के लिए मिड मिल योजना लागू है। सुदूर इलाकों में स्कूल खोलने के दावे किये जा रहे हैं ताकि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे, लेकिन इसके साथ ही बच्चों को स्कूल जाने के लिए खतरनाक सफर करना पड़ता है इसकी तस्वीर पुणे-औरंगाबाद मार्ग पर एक गांव में देखने को मिलती है|
क्या है गांव की स्थिति: औरंगाबाद जिले का धनोरा गांव पुणे-औरंगाबाद हाईवे से महज पांच किलोमीटर दूर है। जयकवाड़ी परियोजना के कारण गाँव दो भागों में विभाजित हो गया। गांव के दूसरे हिस्से में एक स्कूल है| इसके कारण बच्चों को उस स्थान तक पहुंचने के लिए नाव से यात्रा करनी पड़ती है| बच्चों के लिए कोई नाव नहीं है| तब थर्मोकोल का नाव उनके माता-पिता ने बनाया हुआ है। बच्चे इसका उपयोग कर स्कूल जाते हैं,लेकिन उनकी चुनौती यहीं ख़त्म नहीं होती| पानी में जहरीले सांप भी पाए जाते हैं|
47 साल से यही स्थिति : गांव में अब यह समस्या उत्पन्न नहीं हुई है| पिछले 47 साल से यही स्थिति है| धनोरा गांव में तीन तरफ पानी है| गांव से सटी शिवना नदी भी है। इस नदी पर कोई पुल नहीं है| अगर बच्चे पानी से सफर नहीं करें तो उन्हें रोजाना 25 किलोमीटर कीचड़ से होकर सफर करना पड़ता है। ग्रामीण इस स्थान पर पुल चाहते हैं| कई सालों से इसकी मांग की जा रही है|
तहसीलदार की रिपोर्ट: गंगापुर तहसीलदार सतीश सोनी ने गांव का दौरा कर निरीक्षण किया| उसकी रिपोर्ट तैयार कर ली गई है। उन्होंने कहा कि जायकवाड़ी परियोजना के दौरान पूरे गांव का पुनर्वास किया गया था, लेकिन कुछ परिवार अपने खेतों में ही रहना चाहते हैं| इसके चलते उनके बच्चों को पानी से होकर सफर करना पड़ता है। यह सवाल विधायक सतीश चव्हाण ने सदन में उठाया|
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