मुंबई की बहुचर्चित मिठी नदी की सफाई परियोजना में हुए घोटाले को लेकर आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए पहली एफआईआर दर्ज की है। 6 मई की सुबह आर्थिक अपराध शाखा ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) से जुड़े ठेकेदारों के ठिकानों पर छापेमारी की। इस कार्रवाई में कम से कम आठ स्थानों—जिसमें ठेकेदारों के आवास और कार्यालय शामिल हैं—की तलाशी ली गई। जांच टीम ने इस परियोजना में 65 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताओं का संदेह जताया है।
यह एफआईआर एक विशेष जांच टीम (SIT) की रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई है, जिसे पिछले साल अगस्त में महाराष्ट्र विधान परिषद के मानसून सत्र के दौरान बीजेपी के विधान पार्षद प्रवीण दरेकर और प्रसाद लाड द्वारा उठाए गए सवालों के बाद गठित किया गया था। उन्होंने मिठी नदी के गाद निकालने (desilting) के ठेकों में भारी अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की ओर इशारा किया था। SIT की रिपोर्ट में कई फर्जी समझौता ज्ञापनों (MoUs) की पुष्टि की गई, जिनके आधार पर पांच ठेकेदारों और तीन BMC अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
EOW की SIT इस घोटाले की गहराई से जांच कर रही है, खासतौर पर इस परियोजना में हुए फंड के दुरुपयोग को लेकर। इस परियोजना की शुरुआत 2005 में मुंबई में 26 जुलाई की भयावह बाढ़ के बाद की गई थी, जिसमें मिठी नदी के 17.84 किमी हिस्से की गाद निकासी और चौड़ीकरण का काम BMC और मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MMRDA) को सौंपा गया था। अब तक इस परियोजना पर लगभग ₹1,300 करोड़ खर्च हो चुके हैं, लेकिन नदी की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं आया।
जांच में तीन प्रमुख ठेकेदारों—कैलाश कंस्ट्रक्शन के काशिवाल, एक्यूट एंटरप्राइजेज के ऋषभ जैन, और मंदीप एंटरप्राइजेज के शेर सिंह—को समन भेजा गया है। EOW के संयुक्त आयुक्त वी.डी. मिश्रा के नेतृत्व में SIT इस बात की जांच कर रही है कि किस तरह से इतने वर्षों तक परियोजना अधूरी रही और करोड़ों की रकम खर्च होने के बावजूद वास्तविक कार्य में कितनी प्रगति हुई।
इस जांच में ठेकों के दस्तावेजों, गाद निकासी की रिपोर्ट्स, और BMC व MMRDA के रिकॉर्ड्स की भी गहनता से पड़ताल की जाएगी। मिठी नदी घोटाले की यह जांच EOW की ऐसी छठी SIT है, जो नागरिक निर्माण से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर रही है। एफआईआर के अनुसार, कथित घोटाले का दायरा लगभग 65,54,13,311 करोड़ रुपये की वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़ा है। फर्जी समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने के लिए पांच ठेकेदारों के साथ-साथ तीन बीएमसी अधिकारियों का भी नाम एफआईआर में दर्ज किया गया है।
इस घटनाक्रम से साफ है कि सरकार अब BMC के भीतर चल रहे वित्तीय अनियमितताओं और ठेका घोटालों पर शिकंजा कसने के मूड में है। यह मामला महाराष्ट्र में प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक बड़ी परीक्षा बन गया है।
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