समाजवादी पार्टी (सपा) ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में अपने तीन विधायकों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। यह कार्रवाई गोशाईगंज से विधायक अभय सिंह, गौरीगंज से विधायक राकेश प्रताप सिंह और ऊंचाहार से विधायक मनोज कुमार पांडेय के खिलाफ की गई है। पार्टी ने यह जानकारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर साझा की।
सपा ने अपने आधिकारिक हैंडल से पोस्ट करते हुए कहा कि “समाजवादी सौहार्दपूर्ण सकारात्मक विचारधारा की राजनीति के विपरीत सांप्रदायिक, विभाजनकारी और पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) विरोधी विचारधारा का साथ देने” के कारण इन विधायकों को पार्टी से निष्कासित किया गया है। पार्टी ने यह भी स्पष्ट किया कि जनहित में यह निर्णय लिया गया है।
सपा के अनुसार, इन विधायकों को पहले हृदय परिवर्तन के लिए समय दिया गया था, लेकिन अब वह अवधि समाप्त हो चुकी है। पार्टी ने अपने पोस्ट में लिखा, “भविष्य में भी ‘जन-विरोधी’ लोगों के लिए पार्टी में कोई स्थान नहीं होगा और पार्टी की मूल विचारधारा के खिलाफ कोई भी गतिविधि अक्षम्य मानी जाएगी।”
इस निष्कासन की पृष्ठभूमि में राज्यसभा चुनाव की घटनाएं हैं, जिनमें इन तीनों विधायकों पर भाजपा को फायदा पहुंचाने का आरोप है। जानकारी के अनुसार, राज्यसभा चुनाव के दौरान ये विधायक पार्टी लाइन से हटकर क्रॉस वोटिंग में शामिल हुए थे। जबकि सपा के पास अपने तीन उम्मीदवारों को जिताने के लिए पर्याप्त विधायक संख्या थी, फिर भी कम से कम सात विधायकों की क्रॉस वोटिंग से भाजपा को बढ़त मिली और सपा को नुकसान उठाना पड़ा।
समाजवादी सौहार्दपूर्ण सकारात्मक विचारधारा की राजनीति के विपरीत साम्प्रदायिक विभाजनकारी नकारात्मकता व किसान, महिला, युवा, कारोबारी, नौकरीपेशा और ‘पीडीए विरोधी’ विचारधारा का साथ देने के कारण, समाजवादी पार्टी जनहित में निम्नांकित विधायकों को पार्टी से निष्कासित करती है:
1. मा.…
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) June 23, 2025
इसके अलावा इन विधायकों पर भाजपा के कार्यक्रमों में भाग लेने और सपा की राजनीतिक दिशा से दूरी बनाए रखने के आरोप भी लगे हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, निष्कासित विधायक लंबे समय से संगठन से विमुख होकर भाजपा के साथ सार्वजनिक मंचों पर नजर आ रहे थे।
हालांकि, तकनीकी रूप से तीनों विधायक अभी भी उत्तर प्रदेश विधानसभा के रिकॉर्ड में समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। जब तक विधानसभा अध्यक्ष की ओर से कोई विधायी कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक उनकी सदस्यता बरकरार रहेगी। सपा की इस सख्त कार्रवाई को आगामी चुनावों से पहले पार्टी में अनुशासन और विचारधारा की स्पष्टता स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
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