कर्नाटक में सत्ता हस्तांतरण को लेकर कांग्रेस के भीतर तनाव चरम पर पहुंच गया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा 2023 में हुए कथित पावर-शेयरिंग समझौते से साफ़ इनकार किए जाने के बाद उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने खुलकर अपनी दावेदारी पेश कर दी है, जिससे पार्टी हाईकमान गंभीर राजनीतिक संकट में फंस गया है।
जब 2023 में कांग्रेस सत्ता में आई थी, तब शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के सबसे मज़बूत दावेदार माने जा रहे थे। उन्हें सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का समर्थन भी प्राप्त था। लेकिन राहुल गांधी, सिद्धारमैया के AHINDA—अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित राजनीतिक मॉडल से खासे प्रभावित थे और इसे राष्ट्रीय स्तर पर दोहराने की रणनीति बना रहे थे। इसी कारण राहुल ने अपने परिवार की राय के विपरीत सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, उस समय दो ढाई-ढाई साल के कार्यकाल वाला फार्मूला सामने आया था, जिसके तहत सिद्धारमैया पहले चरण में और शिवकुमार दूसरे चरण में मुख्यमंत्री बनने पर सहमत हुए थे। शिवकुमार ने यहां तक कहा था कि वे KPCC अध्यक्ष पद छोड़ देंगे और मंत्रालय भी नहीं लेंगे। बाद में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनने और संगठन की जिम्मेदारी संभाले रखने की सलाह दी गई।
शिवकुमार के भाई, सांसद डी.के. सुरेश ने इस समझौते को सार्वजनिक करने का अनुरोध भी किया था, लेकिन सिद्धारमैया ने खुद को “वचन का पक्का” बताते हुए इसे अनावश्यक बताया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी प्रशासनिक असर का हवाला देकर इसे गोपनीय रखने की सलाह दी।
अब सिद्धारमैया यह कह रहे हैं कि ऐसा कोई समझौता हुआ ही नहीं था। उनके इस रुख ने राहुल गांधी को बेहद असहज स्थिति में डाल दिया है। यदि हाईकमान सिद्धारमैया को हटाकर शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाता है, तो संदेश जाएगा कि पार्टी ने एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री को ज़बरन हटाया। यदि सिद्धारमैया को जारी रहने दिया जाता है, तो वर्षों से पार्टी में जमे पुराने कांग्रेसी खुद को उपेक्षित महसूस करेंगे। क्योंकि सिद्धारमैया 2008 में कांग्रेस में आए थे और पार्टी में उनका नया समूह सत्ता के केंद्र में है।
शिवकुमार द्वारा 20 नवंबर को सिद्धारमैया के ढाई साल पूरे होते ही दावेदारी जताने के बाद राहुल गांधी ने B.K. हरिप्रसाद, मंत्री कृष्णा बैरे गौड़ा और आईटी/बीटी मंत्री प्रियांक खड़गे समेत कई नेताओं से लंबी चर्चा की। राहुल ने सिद्धारमैया समर्थकों की मीडिया मुहिम पर स्पष्ट नाराज़गी दिखाई, जिसने सरकार के भीतर गुटबाज़ी को हवा दी है।
हाईकमान की चिंता यह है कि कर्नाटक, दक्षिण में कांग्रेस का अंतिम बड़ा क़िला है—किसी भी गलत कदम से पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, सिद्धारमैया शुरू में नवंबर के बाद पद छोड़ने के लिए राज़ी थे, लेकिन वे मार्च तक विस्तार चाहते थे, ताकि वे राज्य के सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री बन सकें। इसी दौरान उनके समर्थकों ने शिवकुमार का रास्ता रोकने के लिए दलित मुख्यमंत्री की मांग उठानी शुरू कर दी। खड़गे को भी इस पद के लिए मनाने की कोशिश हुई, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।
यह रणनीति शिवकुमार को भड़काने के लिए थी, लेकिन उन्होंने अब तक कोई तीखा बयान नहीं दिया। इसके बजाय उन्होंने अपने समर्थकों को संदेश फैलाने दिया कि वे पदभार संभालने के लिए तैयार हैं।
गुरुवार को दिल्ली रवाना होने से पहले मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि जल्द ही दोनों नेताओं को दिल्ली बुलाया जाएगा और पार्टी सभी भ्रम दूर करने के लिए उचित निर्णय लेगी। इंतज़ार अब इस बात का है कि कांग्रेस हाईकमान इस उलझन से बाहर कैसे निकलता है, क्योंकि हर फैसला पार्टी के लिए भारी राजनीतिक कीमत लेकर आने वाला है।
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