शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा कराये गए जातिगत जनगणना पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह किसी भी राज्य को फैसला लेने से नहीं रोक सकती है। बता दें कि इस मामले में एक गैर सरकारी संगठन “एक सोच.एक प्रयास” सहित कई अन्य लोगों द्वारा याचिका दायर की गई थी। नालंदा निवासी अखिलेश कुमार द्वारा भी एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें कहा गया था कि जातिगत जनगणना के लिए जारी अधिसूचना असंवैधानिक है।
गौरतलब है कि इसी माह 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति जनगणना का आंकड़ा जारी किया था। जिसमें बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा बताया गया है। इसके पक्ष जेडीयू, आरजेडी कांग्रेस सहित कई राजनीति दल पक्ष में थे। उनका कहना है कि इससे पिछड़ी, अतिपिछड़ी जातियों के विकास में मदद मिलेगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि “हम अभी किसी चीज पर रोक नहीं लगा रहे हैं। हम किसी राज्य सरकार या किसी भी सरकार को नीतिगत फैसले लेने से नहीं रोक सकते हैं। यह गलत होगा ” दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने सरकार द्वारा जारी किये गए आंकड़ों पर रोक लगाने की मांग की थी।
जनगणना के अनुसार ओबीसी (पिछड़ी ) 27.13 प्रतिशत, अत्यंत अति पिछड़ा वर्ग 36. 01 प्रतिशत, सामान्य 15.52 प्रतिशत ,एससी 19 प्रतिशत और एसटी 1.68 प्रतिशत है। सामान्य वर्ग 15.52 प्रतिशत, भूमिहार 2. 86 प्रतिशत, ब्राह्मण 3. 66 प्रतिशत, कुर्मी 2. 87 प्रतिशत, मुसहर 3 प्रतिशत, यादव 14 प्रतिशत, राजपूत 3. 45 प्रतिशत है। जनगणना में यह भी सामने आया है कि बिहार में 82 प्रतिशत हिन्दू , 17.7 प्रतिशत मुसलमान, .05 प्रतिशत ईसाई, . 08 प्रतिशत बौद्ध, जबकि . 0016 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनका कोई धर्म ही नहीं है। बिहार की कुल आबादी की बात की जाए तो 13 करोड़ 7 लाख 310 है।
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