उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव-2022 में तीसरे चरण के 16 जिलों की 59 सीटों पर वोटिंग की जा रही है। पिछले तीन चुनाव का परिणाम यही कहता है कि इन सीटों के मतदाता जिस पार्टी के साथ गए, लखनऊ की कुर्सी पर वही काबिज हुआ। सिर्फ यही नहीं, इन सीटों के मतदाताओं ने जिस पार्टी को भी वोट दिया, दिल खोल करके दिया। वह चाहे पिछले वर्ष 2007, 2012 या 2017 के विधानसभा चुनाव ही क्यों ना हो। वर्ष 2007 में 59 में बसपा को 28 सीट मिलीं। वर्ष 2012 में सपा ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि वर्ष 2017 की मोदी लहर में भाजपा ने 49 सीटों पर जबरदस्त जीत हासिल की थी।
तीसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, हाथरस, मैनपुरी, एटा व कासगंज की 19 सीटें हैं। वहीं, बुंदेलखंड के 5 जिलों झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा की 13 सीटें हैं। अवध क्षेत्र के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा की 27 विधानसभा सीटों पर वोटिंग है। इन 16 जिलों की 59 सीटों में से 30 सीटों पर यादव वोट अधिक है।
तीसरे चरण के चुनाव में भाजपा और सपा दोनों ही एक बार फिर जातीय समीकरणों को साधने का प्रयास कर रही हैं। जहां भाजपा ध्रुवीकरण के सहारे हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश में है, वहीं सपा गठबंधन गैर यादव पिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश की है। 2017 में भाजपा ने हिंदुत्व और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर अपना परचम लहराया था।
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