वसई-विरार सिटी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (VVCMC) में अवैध निर्माण को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच में सामने आया है कि पूर्व आयुक्त अनिल पवार ने बिल्डरों और डेवलपर्स से ₹169.18 करोड़ की रिश्वत वसूली थी। इनमें से ₹16.59 करोड़ पहले से बने अवैध निर्माणों को अनदेखा करने के लिए, और ₹152.59 करोड़ नए प्रोजेक्ट्स को मंजूरी देने के लिए वसूले गए थे।
ईडी को यह जानकारी निलंबित टाउन प्लानिंग विभाग के उपनिदेशक वाई.एस. रेड्डी ने दी है। रेड्डी ने बयान में कहा कि जैसे ही अनिल पवार ने पद संभाला, उन्होंने बिल्डरों, डेवलपर्स और आर्किटेक्ट्स से रिश्वत मांगना शुरू कर दिया। जब तक रिश्वत नहीं दी जाती थी, फाइलें मंजूर नहीं की जाती थीं।
रेड्डी ने ईडी को बताया कि पवार ने उन्हें निर्देश दिया था कि बिल्डरों और डेवलपर्स से रिश्वत की रकम नकद में वसूल की जाए। उन्होंने कहा, “पवार ने कहा था कि बिल्डरों, डेवलपर्स और आर्किटेक्ट्स से संपर्क करो और उन्हें रिश्वत देने के लिए राज़ी करो।” रेड्डी के मुताबिक, पवार का स्टाफर अंकित मिश्रा रिश्वत की रकम और फाइलों का पूरा रिकॉर्ड रखता था।
ईडी के अनुसार, पवार हर शुक्रवार को नकदी इकट्ठा कर सतारा, नासिक और पुणे जाया करते थे। रेड्डी ने यह भी पुष्टि की कि पवार ने 457 शहरी क्षेत्र और 129 ग्रीन ज़ोन के मामलों में अवैध रूप से ‘कमेंसमेंट सर्टिफिकेट्स’ जारी किए थे।
ईडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनिल पवार ने अवैध कमाई को वेयरहाउसिंग और भूमि निवेश में लगाया। ये निवेश उन्होंने अपनी पत्नी भारती पवार, बेटियों श्रुतिका और रेवती, तथा रिश्तेदारों अमोल पाटिल (भारती के कज़िन) और जनार्दन पवार (भतीजे) के नाम पर किए।
ईडी ने बताया कि पवार ने इन अवैध पैसों को वैध रूप में बदलने के लिए ‘Antonov Warehousing Parks Project, भिवंडी’ और ‘Dhwaja Warehouses Pvt Ltd’ जैसी कंपनियों का इस्तेमाल किया। एजेंसी के मुताबिक,“पवार ने रिश्वत की रकम को पारिवारिक इक्विटी में बदलकर कानूनी संपत्ति का रूप दिया और उसके असली स्रोत को छुपा लिया।
ईडी ने हाल ही में इस मामले में 18 आरोपियों के खिलाफ अभियोजन शिकायत (Prosecution Complaint) दायर की है। जांच एजेंसी का कहना है कि इस भ्रष्टाचार से जुड़ी कुल मनी लॉन्ड्रिंग राशि ₹300.92 करोड़ तक पहुंचती है।
ईडी का मानना है कि अनिल पवार ने न केवल नगर निगम की मंजूरी प्रक्रिया को रिश्वत के जाल में बदल दिया, बल्कि अपने परिवार और सहयोगियों को उस धन से संपन्न किया। इस खुलासे ने महाराष्ट्र में शहरी निकायों में जारी भ्रष्टाचार की जड़ों को एक बार फिर उजागर कर दिया है।
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