राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में चार साल बाद इस दिवाली नियंत्रित आतिशबाज़ी की इजाज़त मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (15 अक्टूबर) को आदेश दिया कि 18 से 21 अक्टूबर के बीच दिल्ली-एनसीआर में प्रमाणित ग्रीन क्रैकर्स (Green Crackers) की बिक्री और इस्तेमाल की अनुमति दी जाएगी। अदालत ने यह भी कहा कि पटाखे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से बेचे जा सकेंगे, लेकिन कड़े नियमों का पालन अनिवार्य होगा।
प्रत्येक पटाखे पर क्यूआर कोड (QR code) होना जरूरी होगा, जिससे उसकी वैधता और पर्यावरण प्रमाणन की जांच हो सके। पटाखे सुबह 6:00 से 7:00 बजे तक और रात 8:00 से 10:00 बजे तक ही फोड़े जा सकेंगे। अदालत ने कहा कि यह फैसला लोगों के स्वास्थ्य, सांस्कृतिक परंपरा और आर्थिक हितों के बीच संतुलन साधने के उद्देश्य से लिया गया है।
‘ग्रीन क्रैकर्स’ पारंपरिक आतिशबाज़ी का कम प्रदूषण फैलाने वाला विकल्प हैं, जिन्हें वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (CSIR-NEERI) द्वारा विकसित किया गया है।इनसे कणीय प्रदूषण (particulate matter) में लगभग 30% तक कमी और गैस उत्सर्जन में 10% से अधिक की कमी होती है। इन पटाखों में राख उत्पन्न करने वाले रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता, शेल आकार छोटे होते हैं, और इनमें विशेष डस्ट सप्रेसिंग (धूल रोकने वाले) यौगिक जोड़े गए हैं। केवल प्रमाणित निर्माता ही इनका उत्पादन कर सकते हैं ताकि गुणवत्ता और पर्यावरणीय मानक सुनिश्चित रह सकें।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 2020 से लागू पूर्ण प्रतिबंध को आंशिक रूप से हटाता है। नवंबर 2020 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दिवाली के दौरान बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली-एनसीआर में सभी तरह के पटाखों पर रोक लगाई थी। अप्रैल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह रोक ग्रीन पटाखों पर भी बढ़ा दी थी, जब तक उनके पर्यावरणीय लाभ प्रमाणित नहीं हो जाते।
पिछले कुछ हफ्तों में अदालत ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) और NEERI की रिपोर्टों की समीक्षा के बाद यह निर्णय लिया। सितंबर में ग्रीन पटाखे बनाने की सशर्त अनुमति दी गई थी, लेकिन बिक्री पर रोक तब तक थी जब तक अदालत का अंतिम आदेश नहीं आता।
अब दिल्लीवासी 21 अक्टूबर तक दिवाली का जश्न सीमित दायरे में मना सकेंगे। हालांकि पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर बड़े पैमाने पर पटाखे छोड़े गए, तो इसका असर कम प्रदूषण वाले उद्देश्यों पर भी भारी पड़ सकता है। दिल्ली की वायु गुणवत्ता हर साल अक्टूबर-नवंबर में वाहनों के धुएं, निर्माण कार्यों की धूल और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के कारण बेहद खराब हो जाती है, जिससे एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) “गंभीर” श्रेणी तक पहुंच जाता है।
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