जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर देश की आत्मा को झकझोर दिया है। लेकिन इस बार केंद्र सरकार ने जवाब भी उसी तीव्रता और स्पष्टता से दिया है। पाकिस्तान पर सीधा कूटनीतिक और मानवीय दबाव बनाते हुए भारत ने दो अहम कदम उठाए हैं—पहला, भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने का निर्णय, और दूसरा, 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने की सूचना।
यह पहला कदम यानी पाकिस्तानियों के लिए वीज़ा सेवाएं निलंबित करने का निर्णय जहां सुरक्षा के लिहाज़ से ज़रूरी था, वहीं इससे एक मानवीय सवाल भी खड़ा हो गया—भारत में वर्षों से रह रहे हिंदू पाकिस्तानी शरणार्थियों का क्या होगा? सरकार ने इस सवाल का जवाब भी उतनी ही स्पष्टता से दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने दो टूक कहा, “यह स्पष्ट किया जाता है कि 24 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान के नागरिकों के लिए वीजा सेवाएं निलंबित करने का निर्णय पहले से जारी हिंदू पाकिस्तानी नागरिकों के दीर्घकालिक वीजा (एलटीवी) पर लागू नहीं होता।” यानी जो हिंदू शरणार्थी पहले से भारत में दीर्घकालिक वीजा पर रह रहे हैं, उन्हें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
सरकार की यह स्पष्टता दर्शाती है कि देश की सुरक्षा और मानवीय जिम्मेदारी—दोनों में संतुलन बनाए रखना उसकी प्राथमिकता है। आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख और शरणार्थियों के प्रति करुणा—दोनों एक साथ चल सकते हैं, यह सरकार ने दिखाया है।
दूसरी तरफ, जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देवश्री मुखर्जी द्वारा पाकिस्तान को भेजे गए पत्र ने भारत की कूटनीतिक आक्रामकता को और मज़बूत किया है। “भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि सिंधु जल संधि 1960 को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखा जाएगा”—यह कथन अपने आप में पाकिस्तान को दिया गया एक गंभीर संदेश है कि अब पुराने समझौते तब तक नहीं चलेंगे जब तक पाकिस्तान अपनी हरकतों में बदलाव नहीं लाता।
पाकिस्तान के निरंतर आतंकवाद को प्रोत्साहन, बातचीत से इनकार और सिंधु संधि के तहत अपनी जिम्मेदारियों का उल्लंघन—ये सभी कारण भारत के इस निर्णय को जायज़ और आवश्यक बनाते हैं। भारत अब सिर्फ ‘सहने’ की मुद्रा में नहीं है, बल्कि ‘सुनाने’ की स्थिति में आ गया है।
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