उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण के क्षेत्र में एक बड़ी पहल करते हुए दृष्टिबाधित छात्रों की शिक्षा को मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के संकल्प को साकार करते हुए सरकार द्वारा राज्य में ब्रेल प्रेस का सशक्त और योजनाबद्ध संचालन किया जा रहा है, जो दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के भविष्य को नई दिशा दे रहा है।
वर्तमान में प्रदेश में दिव्यांग सशक्तीकरण विभाग के अधीन 5 ब्रेल प्रेस संचालित हो रहे हैं। इन प्रेसों में उत्तर प्रदेश के दृष्टिबाधित विद्यालयों के छात्रों के लिए पाठ्यपुस्तकों की ब्रेल लिपि में छपाई की जा रही है। यह पहल दृष्टिबाधित छात्रों को समान और समावेशी शिक्षा उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को भी मजबूत कर रही है।
इनमें लखनऊ स्थित राजकीय ब्रेल प्रेस की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यहां से उत्तर प्रदेश बोर्ड की हाई स्कूल स्तर तक की सभी विषयों की पुस्तकें ब्रेल में तैयार की जाती हैं, जिससे छात्रों को समय पर और गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक सामग्री उपलब्ध हो रही है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं और अन्य शैक्षणिक अवसरों में किसी प्रकार की बाधा का सामना न करना पड़े।
ब्रेल प्रेस के इस उत्कृष्ट कार्य के लिए भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में लखनऊ ब्रेल प्रेस को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार राज्य सरकार की दिव्यांग-हितैषी नीतियों की पुष्टि करता है और संस्थान की गुणवत्ता को रेखांकित करता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार-बार यह दोहराते आए हैं कि, “हर नागरिक, चाहे वह किसी भी शारीरिक स्थिति में हो, राज्य के विकास में सहभागी हो सकता है, बशर्ते उसे उचित संसाधन और अवसर दिए जाएं।”इसी सोच को आधार बनाकर दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए शैक्षिक संसाधनों का विस्तार, छात्रवृत्ति योजनाएं, छात्रावास सुविधाएं और तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रम जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं।
सरकार की योजना है कि आने वाले समय में ब्रेल प्रेस को और अधिक तकनीकी रूप से उन्नत किया जाए और साथ ही डिजिटल ब्रेल सामग्री को भी विकसित किया जाए, ताकि विद्यार्थी वैश्विक स्तर की शिक्षा से जुड़ सकें। योगी सरकार द्वारा दृष्टिबाधित छात्रों की शिक्षा के लिए उठाए गए कदम यह दर्शाते हैं कि दिव्यांगता को किसी की कमजोरी नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में देखा जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में चल रही यह पहल दिव्यांग शिक्षा के क्षेत्र में एक मॉडल बनकर उभर रही है, जिससे देश के अन्य राज्य भी प्रेरणा ले सकते हैं।
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