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Sunday, December 28, 2025
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महादेव की आराधना में लीन योगी, गोरखनाथ मंदिर में रुद्राभिषेक से की संपूर्ण जगत कल्याण की कामना!

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक्स हैंडल से इस पोस्ट को रीपोस्ट किया गया, जिसमें पूजा के दौरान की कुछ तस्वीरें भी साझा की गईं, जो भक्तों के बीच वायरल होती नजर आईं।

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गोरखनाथ मंदिर की सुबह रविवार (20 अप्रैल) को एक अलग ही आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने गोरखपुर प्रवास के दौरान गोरखनाथ मंदिर में विधिपूर्वक रुद्राभिषेक और हवन-पूजन किया। मंत्रोच्चारण की पवित्र गूंज, अग्नि में आहुतियों की सुगंध और शिव आराधना की गंभीरता—हर दृश्य यह संकेत दे रहा था कि गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ सत्ता में होने के बावजूद साधना में ही अपना मूल मानते हैं।

गोरखनाथ मंदिर के आधिकारिक एक्स हैंडल पर साझा जानकारी के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने प्रातःकालीन पूजन में संपूर्ण विधियों के साथ भगवान शिव की आराधना की। पोस्ट में लिखा गया, “गोरक्षपीठाधीश्वर, महंत योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने आज श्री गोरखनाथ मंदिर में विधि-विधान से मंत्रोच्चारण के साथ रुद्राभिषेक और हवन-पूजन किया। महाराज जी ने देवाधिदेव महादेव से संपूर्ण जगत के कल्याण की कामना की।”

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक्स हैंडल से इस पोस्ट को रीपोस्ट किया गया, जिसमें पूजा के दौरान की कुछ तस्वीरें भी साझा की गईं, जो भक्तों के बीच वायरल होती नजर आईं।

योगी आदित्यनाथ का यह धार्मिक पक्ष उनके प्रशासनिक कर्तव्यों से किसी भी तरह से कम नहीं। शनिवार को उन्होंने मंदिर परिसर में ‘जनता दर्शन’ कार्यक्रम में भाग लिया, जहां वे स्वयं आम नागरिकों से मिले और उनकी समस्याएं सुनीं। चाहे वो भूमि विवाद हो, इलाज की जरूरत हो या पुलिस से जुड़ी शिकायत—मुख्यमंत्री ने हर फरियादी से सीधे संवाद किया और अधिकारियों को तत्काल निर्देश जारी किए।

उन्होंने सख्त लहजे में कहा, “किसी भी पीड़ित को सरकारी दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़ें। निष्पक्ष और समयबद्ध समाधान सुनिश्चित किया जाए।” उनकी सादगी और संकल्प का यह उदाहरण बताता है कि उनके लिए जनसेवा और धर्म, दोनों समान रूप से पवित्र कर्तव्य हैं।

गौरतलब है कि गोरखनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक और आध्यात्मिक पहचान का केंद्र भी है। यहां उनका हर कदम केवल पूजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संदेश होता है—जहां शासन और साधना एक-दूसरे से जुड़े हैं, न कि अलग। गोरखनाथ की गूंज में जब सत्ता और साधना एकाकार होती है, तब जनता को केवल दर्शन नहीं, समाधान भी मिलता है।

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