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“किसी सनातनी की चोटी काटना अत्यंत निंदनीय, जातिवाद फैलाना गलत”

इटावा में कथावाचक के अपमान से नाराज़ हुए देवकीनंदन ठाकुर

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कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने 21 जून को इटावा में कथावाचकों मुकुट मणि यादव और संत कुमार यादव के साथ हुई कथित बदसलूकी पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस घटना को सनातन धर्म के अपमान से जोड़ते हुए कहा कि “किसी सनातनी की चोटी काटना, तिलक या कलावे का अपमान करना अत्यंत निंदनीय कृत्य है। यह सीधे-सीधे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है।”

देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि धर्म किसी जाति से बंधा नहीं है, और उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “मैं जातियों में बंटना नहीं चाहता। मैं सभी सनातनियों को जोड़ना चाहता हूं। जो लोग जाति के नाम पर बयानबाजी कर रहे हैं, वे वही कर रहे हैं जो अंग्रेजों ने किया था — समाज को बांटने का काम।”

उन्होंने इटावा घटना के बाद हो रही राजनीतिक बयानबाज़ी पर नाराज़गी जताते हुए कहा, “मैं देख रहा हूं कि एक गांव में एक घटना घटी और देश के बड़े नेता इस पर जाति के नाम पर कूद पड़े। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि धर्म की जगह जातिवाद को हवा दी जा रही है।”

उन्होंने आगे कहा, “सनातन धर्म में जितने भी अवतार हुए हैं, सबका उद्देश्य धर्म की स्थापना था। हमारा भी यही कर्तव्य होना चाहिए कि धर्म को मजबूत करें, न कि उसका खंडन करें। देश को बचाना है तो धर्म को साथ लेकर चलना होगा।”

यह पूछे जाने पर कि क्या ब्राह्मण के अलावा अन्य जातियों के लोग कथा कर सकते हैं, ठाकुर ने साफ कहा, “कथा कोई भी कर सकता है। हमने रसखान को स्वीकार किया है, उनके पद गाते हैं। फिर आज जाति के नाम पर भेद क्यों? धर्म में बंटवारा नहीं होना चाहिए।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कथा-प्रवचन कोई जातिगत अधिकार नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक सेवा है और जो भी श्रद्धा से करता है, उसे स्वीकार किया जाना चाहिए।

इटावा की घटना पर कानून व्यवस्था को लेकर भी उन्होंने बयान दिया, “जो भी घटनाएं हुई हैं, उसके लिए प्रशासन है। प्रशासन जांच करे और दोषी को सजा दे। लेकिन समाज को बांटने का काम बड़े पदों पर बैठे लोगों को नहीं करना चाहिए।” देवकीनंदन ठाकुर की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब इटावा कांड को लेकर कई राजनीतिक दलों और नेताओं ने जातिगत विमर्श को हवा दी, जिससे सोशल मीडिया पर भी घमासान मचा हुआ है।

देवकीनंदन ठाकुर ने अपने बयान से यह स्पष्ट कर दिया है कि सनातन धर्म में विभाजन नहीं, बल्कि समरसता ही सबसे बड़ा आदर्श है — और जो इसे तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, वे ना धर्म के सच्चे हितैषी हैं, ना देश के।

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