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Thursday, December 11, 2025
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कोथंडारामसामी मंदिर में 83 साल बाद दौड़ा रथ, भक्तों में उमड़ा उत्साह

15 फीट चौड़ा, 15 फीट ऊंचा और 15 टन वजनी यह रथ कारीगरों की बारीक कलात्मकता का प्रतीक है।

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ऐतिहासिक अरुलमिगु कोथंडारामसामी मंदिर में रविवार को एक ऐतिहासिक क्षण तब देखने को मिला, जब 83 साल बाद रथ यात्रा का ट्रायल रन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। श्रद्धा और उल्लास से ओतप्रोत इस आयोजन में हजारों भक्तों ने भाग लिया और “गोविंदा गोविंदा” के जयघोष के साथ भगवान श्रीनिवास पेरुमल के रथ को पूरे उत्साह से खींचा।

रथ यात्रा को तमिलनाडु के परिवहन और बिजली मंत्री एस.एस. शिवशंकर ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। उन्होंने रथ की रस्सी खींचकर इसका विधिवत शुभारंभ भी किया। यह आयोजन इसलिए भी खास बन गया क्योंकि साल 1942 के बाद पहली बार इस मंदिर में रथ खींचा गया, जिससे श्रद्धालुओं के बीच भारी उत्साह देखा गया।

हज़ार साल पुराने इस मंदिर की खासियत यह है कि यह तमिलनाडु का एकमात्र मंदिर है, जहां भगवान पेरुमल की दशावतार मूर्तियां छह फुट ऊंचाई में विराजमान हैं। इस मंदिर की ऐतिहासिक महत्ता को ध्यान में रखते हुए हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (HR & CE) ने 18.6 लाख रुपये की लागत से भक्तों के सहयोग से नया रथ तैयार कराया।

15 फीट चौड़ा, 15 फीट ऊंचा और 15 टन वजनी यह रथ कारीगरों की बारीक कलात्मकता का प्रतीक है। इसे भगवान के विभिन्न अवतारों, गणपति (विनयगर), मुरुगर, वल्ली और देवनाई की आकर्षक मूर्तियों से सजाया गया है।

ट्रायल रन से पहले मंदिर परिसर में श्रीनिवास पेरुमल, श्रीदेवी और भूदेवी का विशेष अभिषेक किया गया। फूलों से सजाकर पवित्र कलश को अरुलमिगु नवनीत कृष्णर मंदिर से लाकर रथ पर स्थापित किया गया। इसके बाद भक्तों ने रथ को कैलासनाथर कोविल स्ट्रीट, पोन्नुसामी अरासुर स्ट्रीट, माथा कोविल स्ट्रीट, तंजावुर रोड, वेल्लालर स्ट्रीट और मंगई पिल्लैयार कोविल स्ट्रीट से होते हुए पुराने रथ स्टैंड तक खींचा।

इस ऐतिहासिक अवसर पर बोलते हुए मंत्री शिवशंकर ने कहा, “मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के निर्देश पर पूरे तमिलनाडु में धार्मिक परंपराओं और उत्सवों को पुनर्जीवित किया जा रहा है। अभी दो दिन पहले 3000 से अधिक कुंभाभिषेक उत्सव आयोजित किए गए। पिछले महीने अरियालुर में ही 82 साल बाद ओप्पिलथा अम्मन मंदिर की रथ यात्रा निकाली गई और आज कोथंडारामसामी मंदिर में रथ दौड़ा। यह सब तमिल संस्कृति के पुनरुत्थान की दिशा में एक बड़ा कदम है।”

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