कबीर और उनके विचारों की बात इसलिए कि ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को संत कबीर की जयंती मनाई जाती है और इस बार पूर्णिमा 24 जून को है. कबीर का जन्म (लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी) काशी में हुआ था. उनके जन्म के संबंध में अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं. उनका लालन पालन जुलाहा परिवार में हुआ था.जन्म को लेकर जो भी मान्यताएं हों, मूल बात यह है कि कबीर ने अपने लेखन में समय के समाज के आडंबर, धर्म भीरूता, पाखंड पर करारी चोट की हैं. वे धर्म और ईश आस्था को उसके वास्तविक अर्थ के साथ प्रस्तुत करने वाले सिद्ध संत थे. उनके दोहों, साखियों में वह राह दिखती है जो जीवन प्रबंधन के लिए आवश्यक है.
इन दोहों को जरा याद कीजिए :
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब.
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब..
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय.
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय..
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय.
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए॥
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये.
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए..
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय.
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय..
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय.