दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में रविवार (5 अक्तूबर)का दिन भारतीय खेल इतिहास के लिए यादगार बन गया। भारत ने वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप 2025 में अपने अब तक के सबसे शानदार प्रदर्शन के साथ कुल 22 पदक जीतकर नया इतिहास रच दिया। यह पहली बार था जब भारत ने इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता की मेजबानी की और 10वें स्थान पर अपना अभियान समाप्त किया।
अंतिम दिन भारतीय एथलीटों ने चार पदक जीतकर देश की झोली में गौरव के चार नए रंग भरे। इनमें नवदीप सिंह, प्रीति पाल, सिमरन शर्मा और संदीप शामिल रहे, जिन्होंने अपने-अपने वर्गों में शानदार प्रदर्शन किया। सभी की निगाहें उस एथलीट पर थीं जिसने पेरिस पैरालंपिक्स में अपने मज़ेदार जश्न से दर्शकों का दिल जीतने वाले नवदीप सिंह पर रही।
रविवार (5 अक्तूबर) को नवदीप ने एक बार फिर धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए F41 वर्ग में रजत पदक अपने नाम किया। उन्होंने 45.46 मीटर का सर्वश्रेष्ठ जेवलिन थ्रो कर सीजन का अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया। इस वर्ग में ईरान के सादेग बेत सयाह ने स्वर्ण पदक जीता। दिलचस्प बात यह रही कि यही ईरानी एथलीट पेरिस पैरालंपिक्स में अयोग्य घोषित कर दिए गए थे, जबकि उन्होंने सबसे लंबा थ्रो किया था। 24 वर्षीय नवदीप ने कहा था कि उनका हर थ्रो देश के लिए है, और रविवार को स्टेडियम में दर्शकों की गूंज ने इसे हकीकत बना दिया।
दूसरी ओर, सिमरन शर्मा ने महिलाओं की 200 मीटर T12 स्पर्धा में जबरदस्त जज़्बा दिखाया। थकान और पीठ दर्द के बावजूद उन्होंने शानदार दौड़ लगाते हुए रजत पदक हासिल किया।
महिलाओं की 100 मीटर T35 रेस में प्रीति पाल ने मानसिक मजबूती का परिचय देते हुए रजत पदक जीता। यह रेस दो बार शुरू करनी पड़ी क्योंकि पहली बार स्टार्टर पिस्टल में तकनीकी खराबी आ गई थी। बावजूद इसके प्रीति ने हार नहीं मानी और रिकॉर्ड समय में दूसरा स्थान हासिल किया।
वहीं पुरुषों की 200 मीटर T44 स्पर्धा में संदीप ने सभी को चौंकाते हुए 23.60 सेकंड के अपने व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय के साथ कांस्य पदक जीता, जिससे भारत का दिन और भी खास बन गया।
भारत की कुल मेडल गिनती:
भारत ने इस चैम्पियनशिप में 6 स्वर्ण, 9 रजत और 7 कांस्य पदक जीतकर कुल 22 पदक हासिल किए। इससे पहले भारत कभी भी 20-पदक का आंकड़ा पार नहीं कर पाया था। इस प्रतियोगिता में ब्राज़ील ने कुल 44 पदकों के साथ शीर्ष स्थान हासिल किया, चीन 52 पदकों के साथ दूसरे और ईरान 16 पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा।
भारत की इस ऐतिहासिक उपलब्धि ने न सिर्फ देश का नाम रोशन किया, बल्कि यह भी साबित किया कि भारतीय पैरा एथलीट अब विश्व मंच पर किसी से पीछे नहीं हैं।
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