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त्वचा रोगों से लेकर कैंसर तक में कारगर, चमत्कारी औषधीय जड़ी-बूटी-बाकुची

यह जड़ी-बूटी ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में भी सहायक हो सकती है

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भारत की प्राचीन चिकित्सा परंपराओं में समाहित एक बहुचर्चित और बहुउपयोगी औषधीय जड़ी-बूटी बाकुची (जिसे बावची या बकुची भी कहा जाता है), एक बार फिर वैज्ञानिक शोधों और आयुर्वेद विशेषज्ञों की चर्चा में है। त्वचा रोगों से लेकर यकृत विकार, गठिया और मधुमेह तक, यह जड़ी-बूटी अपने व्यापक औषधीय गुणों के कारण ‘प्राकृतिक वरदान’ के रूप में उभर रही है।

रिसर्च गेट में अक्टूबर 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, बाकुची के बीजों में पाया जाने वाला प्रमुख यौगिक प्सोरालेन (Psoralen), सूर्य की किरणों के संपर्क में आने पर मेलानिन उत्पादन को उत्तेजित करता है। इसके प्रभाव से विटिलिगो (सफेद दाग), सोरायसिस, एक्जिमा और खुजली जैसी त्वचा समस्याओं में राहत मिलती है। बाकुची का तेल त्वचा पर लगाने से न केवल संक्रमण कम होते हैं, बल्कि त्वचा में प्राकृतिक निखार भी आता है।

आयुर्वेदिक ग्रंथों में बाकुची को कफ-वात शामक, दीपन-पाचन युक्त, रक्तशोधक और वृष्य (प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाली) औषधि के रूप में जाना गया है। यह जड़ी-बूटी यकृत विकार, बवासीर, पेट के कीड़े, घावों और मूत्र विकारों में उपयोगी मानी जाती है।

बाकुची में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण, हड्डियों को मजबूत बनाने और गठिया व ऑस्टियोपोरोसिस जैसे रोगों में राहत देने में मदद करते हैं। यह जोड़ों की सूजन को कम करने और मूवमेंट को बेहतर बनाने में प्रभावी मानी जाती है।

हाल के कुछ वैज्ञानिक शोधों से यह संकेत मिले हैं कि बाकुची में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने वाले तत्व मौजूद होते हैं। इसके अलावा, यह जड़ी-बूटी ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में भी सहायक हो सकती है, जिससे यह मधुमेह के रोगियों के लिए उपयोगी विकल्प बन सकती है।

हालांकि बाकुची एक प्राकृतिक औषधि है, लेकिन इसका अत्यधिक या अनियंत्रित उपयोग शरीर पर दुष्प्रभाव डाल सकता है। विशेष रूप से फोटोसेंसिटिविटी यानी धूप में जलन या एलर्जी जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। त्वचा पर प्रत्यक्ष उपयोग से पहले परीक्षण जरूरी है, और इसे केवल प्रशिक्षित आयुर्वेदाचार्य या चिकित्सक की सलाह से ही लेना चाहिए।

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