श्रावण माह के पवित्र सोमवार को उपवास रखने वालों के लिए यह एक खास और कम प्रसिद्ध लेकिन बेहद स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट व्यंजन है — कुट्टू और सिंघाड़े के आटे का चिल्ला। पारंपरिक व्रत भोजन की तुलना में यह चिल्ला एक नवाचार भरा, हल्का और ऊर्जा से भरपूर विकल्प है, जो स्वाद और पोषण दोनों में भरपूर है।
इस व्यंजन को बनाने में कुट्टू का आटा (buckwheat flour) और सिंघाड़े का आटा (water chestnut flour) का उपयोग होता है, जो दोनों ही ग्लूटन-फ्री होते हैं और उपवास में मान्य माने जाते हैं। इसमें उबले हुए आलू, कद्दूकस किया हुआ अदरक, काली मिर्च, सेन्धा नमक, हरी मिर्च और धनिया पत्ता मिलाकर एक गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है। इस घोल से धीमी आंच पर घी में कुरकुरा और सुनहरा चिल्ला बनाया जाता है, जो बाहर से खस्ता और अंदर से मुलायम होता है।
सेविंग के लिए इसे व्रत वाली हरी चटनी, दही, या मीठे दही के साथ परोसा जा सकता है। इसकी खास बात यह है कि यह चिल्ला न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि इसमें छिपा हुआ पोषण भी इसे उपवास के लिए उपयुक्त और संतुलित बनाता है।
कैसे बनाए कुट्टू-सिंघाड़े के आटे का चिल्ला:
इस पौष्टिक चिल्ले को बनाने के लिए सबसे पहले एक बर्तन में आधा कप कुट्टू का आटा और आधा कप सिंघाड़े का आटा मिलाएं। इसके बाद इसमें एक उबला हुआ और कद्दूकस किया हुआ आलू डालें। स्वाद और सुगंध के लिए एक छोटा चम्मच कद्दूकस किया हुआ अदरक, एक बारीक कटी हुई हरी मिर्च (इच्छानुसार), दो चम्मच बारीक कटा हरा धनिया, स्वादानुसार सेंधा नमक और एक चौथाई चम्मच काली मिर्च भी डाल दें।
अब इसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलाकर एक गाढ़ा और थोड़ा बहने लायक घोल तैयार करें। इस घोल को 5 से 7 मिनट के लिए ढककर रख दें ताकि यह थोड़ा सेट हो जाए। इस बीच, एक नॉन-स्टिक या लोहे का तवा गरम करें और उस पर थोड़ा घी डालें।
तवा गरम होने के बाद, उसमें एक चमच भर बैटर डालें और उसे गोलाई में धीरे-धीरे फैलाएं ताकि वह चिल्ले जैसा आकार ले ले। अब किनारों से थोड़ा और घी डालें और मध्यम आंच पर इसे दोनों तरफ से 3–4 मिनट तक सेकें। जब चिल्ला सुनहरा और कुरकुरा हो जाए, तब यह परोसने के लिए तैयार है।
आप इसे व्रत वाली हरी चटनी, ताज़ा दही या मीठे दही के साथ गरमागरम परोस सकते हैं। यह स्वाद और सेहत दोनों में भरपूर व्यंजन उपवास के दौरान शरीर को ऊर्जा और संतुलित पोषण देने का उत्तम विकल्प है।
इस व्यंजन की एक और विशेषता यह है कि यह डीप फ्राई न होकर हल्का होता है, जिससे उपवास के दौरान शरीर को ऊर्जा तो मिलती है लेकिन भारीपन नहीं महसूस होता। यह चिल्ला परंपरा और पोषण का ऐसा संगम है, जो उपवास को न सिर्फ धार्मिक भावना से जोड़ता है, बल्कि संतुलित आहार के रूप में भी एक उत्तम उदाहरण पेश करता है।
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