इसके अलावा भी सबसे बड़ा सवाल यह है कि आनंद मोहन किस पार्टी में शामिल होगा ? क्या 2024 के लोकसभा और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को राजपूत समुदाय एकमुश्त वोट देगा ? क्या आनंद मोहन की रिहाई के बाद नीतीश कुमार से दलित वोट छिटकेगा? इन सब सवालों से मार्मिक और दिल को झकझोर देने वाला सवाल यह है कि इस सियासी खेल में एक विधवा अपनी बेबसी किससे कहेगी? क्या राजनीति के खेल में ममता और मानवता अपना मुंह छिपा लेगी ?
तो दोस्तों ये सवाल बस सवाल ही रह जाएंगे। नीतीश कुमार इस मामले पर बोलने से कतराएंगे राजनीति पैंतरेबाजी की इस खिचड़ी में आनंद मोहन को आनंद ही आनंद है। बहरहाल,पहले हम जानेंगे की यह मामला क्या है ? तो आनंद मोहन तेलंगाना के रहने वाले जी कृष्णैया के हत्या का दोषी था. उसे पहले फांसी की सजा सुनाई गई थी। बाद में ऊपरी अदालत ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। आनंद मोहन 15 साल अपनी सजा काट लिया। जिसे अब जेल की नियमावली में बदलाव कर रिहा किया गया है। नीतीश सरकार ने जेल नियमावली जो बदलाव किया है, उसमें कहा गया है कि अब सरकारी कर्मचारी की हत्या भी सामान्य हत्या मानी जायेगी। जबकि पहले सरकारी कर्मचारी की हत्या करने पर पूरी सजा से पहले छूट का कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए आनंद मोहन रिहा हुआ है।
इस मामले की सबसे बड़ी बात यह है कि आनंद मोहन के साथ 26 लोग भी छूट रहे हैं। गौरतलब है डीएम जी कृष्णैया की हत्या के लिए एकमात्र आनंद मोहन ही दोषी है। बाकी 25 अपराधियों पर सरकारीकर्मी की हत्या का केस नहीं है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इन 25 अपराधियों की सामान्य रिहाई है। हालांकि, बिहार सरकार ने 27 लोगों के रिहा करने का नोटिफिकेशन जारी किया है। इसमें से एक अपराधी की मौत हो चुकी है।
इस रिहाई में जाति समीकरण का खासा ध्यान दिया गया है। इनमें आठ यादव, पांच मुस्लिम, चार राजपूत, तीन भूमिहार, दो कोयरी, एक कुर्मी ,एक गंगोता और एक नोनिया जाति के अपराधी हैं। जब की दो अपराधियों की जाति की जानकारी सामने नहीं आई है। यानी, नीतीश सरकार ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव जितने के लिए जाति का सही समीकरण तैयार किया है। अब सवाल यह है कि आनंद मोहन सिंह या राजपूत समाज का बिहार की राजनीति में कितना रसूख है। तो आनंद मोहन का 90 के दशक के आसपास जलवा हुआ करता था। लेकिन, अब माना जा रहा है कि आजकल की युवा पीढ़ी के विचारों में बड़ा बदलाव आया है,तो बाहुबली आनंद मोहन का पहले वाला दमखम देखने को नहीं मिल सकता है। अब जाति गोलबंदी दिखाई नहीं देती है।
हालांकि, राजपूत वाले बेल्ट में आनंद मोहन का प्रभाव हो सकता है, पर पहले वाले जलवे जैसा नहीं होगा। अब अगर बात राजपूत समाज की जाय तो बिहार के 40 विधानसभा और 10 लोकसभा सीटों पर खासा प्रभाव रखते हैं। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव आगामी चुनावों में बीजेपी को मात देने के लिए राजपूत समाज को अपने पाले में लाने के लिए ही यह चाल चली है। गौरतलब है कि बिहार में राजपूतों की आबादी 6 से आठ प्रतिशत है। कई ऐसे इलाके हैं जहां राजपूत समाज की मजबूत पकड़ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 5 राजपूतों को अपना उम्मीदवार बनाया था और बीजेपी को इसमें कामयाबी भी मिली। पांचों उम्मीदवार जीत कर संसद पहुंचे थे। जबकि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 28 राजपूत विधायक जीते थे, जिसमें 15 विधायक बीजेपी से थे। वहीं, जेडीयू से दो, आरजेडी से सात चुने गए थे, बाकी अन्य से थे।
सबसे बड़ी बात यह है कि 2014 से पहले राजपूत समाज आरजेडी जुड़ा हुआ था। लेकिन पीएम मोदी के आने के बाद यह समाज बीजेपी से जुड़ गया है। हालांकि, बिहार में बीजेपी का कोर वोट भूमिहार रहा है जो अभी भी पार्टी के साथ है। इसी जाति समीकरण को देखते हुए बीजेपी भी आनंद मोहन के विरोध में खुलकर सामने नहीं आ रही है। जबकि, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव आनंद मोहन के जरिये राजपूत वोट को बीजेपी से छीनना चाहते हैं। देखना हो होगा कि दोनों नेताओं की रणनीति कामयाब होती है कि नहीं।
दूसरी बात यह कि बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री से भी महागठबंधन बैकफुट पर है। कई इलाकों में मुस्लिम समाज हार जीत के निर्णायक भूमिका होता है। सीमांचल में चार जिलों में 50 प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है। यहां 24 विधान सभा और चार लोकसभा सीटें हैं। इस पर ओवैसी का बड़ा दखल माना जा रहा है। इसको देखते हुए भी नीतीश ने राजपूत समाज को अपनी पार्टी से जोड़ने के लिए आनंद मोहन रूपी चारा फेंका है। आनंद मोहन की रिहाई पर ओवैसी ने नीतीश कुमार को घेरा है। वहीं, इस मामले में यह सवाल शुरू से उठता रहा है कि दलित वोटर किधर जाएगा। क्योंकि बीएसपी की मुखिया मायावती ने आनंद मोहन की रिहाई का कडा विरोध कर रही है। दरअसल जी कृष्णैया दलित समाज से थे। इसलिए मायावती नीतीश कुमार को दलित विरोधी बताया है। लेकिन, कहा जा रहा है इसका ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला, क्योंकि बिहार में दलित वोट पहले से ही चिराग पासवान की पार्टी से जुड़ा हुआ है।
तो ज्यादा कुछ असर देखने को नहीं मिलेगा। नीतीश कुमार से भी दलित जुड़े हुए है, अब मामला सवाल यह है कि महागठबंधन या नीतीश कुमार कैसे दलितों पर अपना दबदबा बनाये रख सकते हैं। यह सब नेताओं के गुणा गणित पर निर्भर करेगा। दूसरी ओर यह भी सवाल सामने आ रहा है कि आनंद मोहन कौन सी पार्टी के साथ जुड़ेंगे। फिलहाल तो उनका बेटा चेतन आनंद लालू की पार्टी आरजेडी से विधायक है और तेजस्वी यादव के करीबी हैं । अब देखना होगा कि इस सियासी घमासान में आनंद मोहन नीतीश की पार्टी से जुड़ता है या लालू की पार्टी से। हालांकि,आरजेडी में आनंद मोहन के जाने के चांस ज्यादा है। लेकिन सियासी खिचड़ी का स्वाद कैसा होगा यह तो चखने के बाद ही पता चलेगा।जिस पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।
वहीं, अब आखिरी सवाल कि एक विधवा की बेबसी पर जुबानी खर्च सब कर हैं, लेकिन उसके दर्द को राजनीति पैतरेबाजी में कोई समझ नहीं रहा है। हालांकि, नीतीश सरकार के आदेश के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। देखना होगा कि इस पर कोर्ट क्या फैसला सुनाता है।