संसद के विशेष सत्र में पास हुआ महिला आरक्षण बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से मंजूरी मिल गई। अब यह बिल कानून बन गया है। शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस बिल को हरी झंडी दिखाया। अब यह बिल कानून के रूप आने के कारण विधान सभा और लोकसभा में एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी। इस संबंध में भारत सरकार ने एक अधिसूचना जारी की है।
नारी शक्ति वंदन बिल नाम दिया: मोदी सरकार ने इस महिला आरक्षण बिल को नारी शक्ति वंदन बिल नाम दिया है। इस बिल 19 सितंबर को नई संसद में पेश किया गया था। लोकसभा में बहस के बाद कराये गए वोटिंग में महिला आरक्षण बिल को 454 वोट मिले थे जबकि विरोध में मात्र दो वोट पड़े। इस बिल का कांग्रेस ने भी समर्थन किया था। हालांकि, कांग्रेस और अन्य दल ओबीसी महिलाओं के लिए भी इसमें आरक्षण चाहते थे। लोकसभा में बिल पास होने के बाद इसे राज्यसभा में भी पेश किया गया। यहां दिनभर चर्चा होने के बाद पास हो गया। राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल के समर्थन में 214 मत मिले।
सबसे पहले इस बिल को 1996 में पेश किया गया: इस तरह दोनों सदनों में यह बिल पास हो गया। इसके बाद इस बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के लिए भेजा गया था। जहां 29 सितंबर को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद अब यह कानून की शक्ल में आ गया है। इसके तहत विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देना अनिवार्य हो गया। बता दें कि सबसे पहले इस बिल को 1996 में तात्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा द्वारा पेश किया गया था, लेकिन पारित नहीं हो पाया था। इसके अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भी इस बिल को लाया गया था मगर पारित नहीं हो पाया था।
जनगणना और परिसीमन के बाद ही होगा लागू: इसके 2008 में यूपीए के पहले कार्यकाल में लाया गया था,लेकिन यह विधेयक लोकसभा में पारित नहीं हुआ ,लेकिन 2010 में राज्यसभा में पास हो गया। 2014 में यूपीए की सरकार जाने के बाद यह बिल भी खत्म हो गया। हालांकि अभी यह बिल कानून बनने के बाद भी लागू नहीं हो पायेगा। यानी कहा जा सकता है इस साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने लोकसभा चुनाव में महिलाओं को इस कानून का लाभ नहीं मिलेगा। यह कानून जनगणना के बाद विधानसभा और लोकसभा सीटों का परिसीमन होगा। ऐसे में कहा जा सकता है कि महिला आरक्षण बिल कानून किन शक्ल में तो आ गया लेकिन इसे लागू होने में थोड़ा समय लगेगा।
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