प्रशांत कारुलकर
तेल, वह सियाही तरल पदार्थ, जिसने आधुनिक सभ्यता के संचालन को गति दी है, अब वैश्विक राजनीति के केंद्र में उथल-पुथल मचा रहा है. तेल अर्थव्यवस्थाएं, जिनकी नसों में इसी काले सोने का संचार होता है, आज असामान्य भू-राजनीतिक घटनाओं के तूफान में फंसी हुई हैं. आइए एक नज़र डालते हैं कि कैसे ब्लैक गोल्ड विश्व शक्ति संघर्ष और ऊर्जा राजनीति के घालमेल में फंस कर तड़प रहा है.
यूक्रेन युद्ध का प्रलयंकारी प्रभाव: रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक तेल बाजार को झकझोर कर रख दिया है. पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूसी तेल आपूर्ति बाधित हुई है, जिससे कीमतों में उछाल आया है. यह उछाल तेल निर्यातक देशों के लिए तो वरदान साबित हुआ है, लेकिन तेल आयातक राष्ट्रों की कमर तोड़ रहा है. भारत जैसे विकासशील देशों पर इसका दोहरा बोझ पड़ रहा है, जहां मुद्रास्फीति भड़क रही है और आम जनता का बजट बिगड़ रहा है.
ओपेक का नया समीकरण: तेल उत्पादक देशों का संगठन (ओपेक) इस महामारी में अपनी रणनीतिक चाल चल रहा है. उत्पादन में सीमित वृद्धि का फैसला कर उसने बाजार में आपूर्ति को नियंत्रित रखा है, जिससे तेल की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं. भले ही हाल के दिनों में कीमतों में गिरावट देखी गई है, लेकिन ओपेक के इस रुख से बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है. ऐसे में ऊर्जा सुरक्षा की चिंताएं भी जोर पकड़ रही हैं, क्योंकि तेल का आयात कम करने वाले विकल्प अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं.
भू-राजनीतिक छींटाकशी: तेल क्षेत्र भू-राजनीतिक छींटाकशी का अखाड़ा भी बन गया है. अमेरिका-ईरान तनाव, यमन में गृहयुद्ध, और वेनेजुएला का राजनीतिक संकट सभी अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार को प्रभावित कर रहे हैं. इन परिस्थितियों में विभिन्न देश अपने हितों को साधने के लिए कूटनीतिक खेल खेल रहे हैं, जिससे वैश्विक राजनीति और भी ज्यादा पेचीदा होती जा रही है.
नवीकरणीय ऊर्जा का उजाला: तेल की अनिश्चितता के इस दौर में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर रुख करना एक उम्मीद की किरण है. सौर, पवन, जलविद्युत जैसे विकल्प धीरे-धीरे ही सही, अपना रास्ता बना रहे हैं. हालांकि, तेल पर निर्भरता को पूरी तरह से कम करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है. सरकारों और निजी क्षेत्र को मिलकर इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की जरूरत है.
भारत की भूमिका
मोदी सरकार भारत के लिए आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते हुए विविधतापूर्ण ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल पर जोर दे रही है. तभी वह इस भूराजनीतिक तूफान में भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखी है. केंद्र सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए है. जिनमें शामिल हैं:
• देश में बायोफ्यूल्स के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देना.
• सार्वजनिक परिवहन को और मजबूत बनाना ताकि निजी वाहनों के इस्तेमाल पर निर्भरता कम हो.
• नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल विद्युत का तेजी से विकास करना.
• स्मार्ट ग्रिड और ऊर्जा दक्षता तकनीकों का इस्तेमाल कर ऊर्जा की बर्बादी कम करना.
तेल की कहानी भविष्य में कैसे लिखी जाएगी, यह कहना मुश्किल है. भू-राजनीतिक घटनाएं, तकनीकी नवाचार, और पर्यावरणीय चिंताएं सभी इसका निर्धारण करेंगे. तेल अर्थव्यवस्थाओं को आने वाले समय में नई चुनौतियों का सामना करना होगा, लेकिन यह तय है कि ब्लैक गोल्ड का वैश्विक राजनीति पर प्रभाव कम होने वाला नहीं है. तेल अर्थव्यवस्थाएं आज भू-राजनीतिक तूफान के केंद्र में फंसी हुई हैं. यूक्रेन युद्ध, ओपेक की रणनीति, और अन्य भू-राजनीतिक घटनाएं बाजार की अनिश्चितता बढ़ा रही हैं. भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा का महत्व निश्चित रूप से बढ़ेगा, लेकिन तेल अभी भी वैश्विक शक्ति संघर्ष और राजनीति का एक प्रमुख मोहरा बना रहेगा.
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