विशेषज्ञों का मानना है कि योग न केवल शारीरिक लचीलापन और ताकत बढ़ाता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है। योग के विभिन्न रूप, जैसे हठ योग, राज योग, भक्ति योग, और कर्म योग, अलग-अलग जरूरतों को पूरा करते हैं।
हठ योग, शारीरिक मुद्राओं (आसन) और प्राणायाम (श्वास नियंत्रण) पर केंद्रित है, जो शरीर को लचीला, मजबूत और स्वस्थ बनाता है। ‘हठ’ शब्द ‘ह’ (सूर्य) और ‘ठ’ (चंद्र) से मिलकर बना है, जो शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने का प्रतीक है। यह योग का वह रूप है, जो आधुनिक जीवनशैली में स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन के लिए सबसे लोकप्रिय है।
यह आसन, प्राणायाम, मुद्राओं का समन्वय है, जो शरीर और मन को शुद्ध करता है। सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, और ताड़ासन जैसे आसन शारीरिक लचीलापन और मांसपेशियों की ताकत बढ़ाते हैं, जबकि अनुलोम-विलोम और कपालभाति जैसे प्राणायाम श्वसन तंत्र को मजबूत करते हैं।
राजयोग ध्यान और मानसिक अनुशासन पर जोर देता है। ‘राज’ अर्थात् ‘श्रेष्ठ’ योग, मन को नियंत्रित कर आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में वर्णित अष्टांग योग राजयोग का आधार है, जो यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के माध्यम से मन की चंचलता को शांत करता है।
राज योग का लक्ष्य चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित करना है, जैसा कि पतंजलि ने कहा, “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः”। यह शारीरिक व्यायाम से अधिक मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास पर केंद्रित है। ध्यान, आत्म-निरीक्षण और एकाग्रता के माध्यम से यह व्यक्ति को तनाव, चिंता और नकारात्मक विचारों से मुक्ति दिलाता है।
राज योग को ‘आत्मा का विज्ञान’ भी कहा जाता है, जो व्यक्ति को अपनी आंतरिक शक्ति और उच्च चेतना से जोड़ता है। विशेषज्ञ राजयोग को आधुनिक जीवन की चुनौतियों का समाधान मानते हैं। स्वामी विवेकानंद ने राजयोग को “मन की शक्ति को जागृत करने की कला” बताया है।
भक्ति योग प्रेम, समर्पण और श्रद्धा के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने का मार्ग है।भगवद्गीता में भक्ति योग को ‘ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण’ के रूप में वर्णित किया गया है, जो मन को शुद्ध करता है और व्यक्ति को आंतरिक शांति व आनंद प्रदान करता है। योग भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुशासन पर केंद्रित है, जो प्रेम और भक्ति को जीवन का आधार बनाता है।
भक्ति योग का मूल तत्व है ईश्वर, गुरु या उच्च शक्ति के प्रति श्रद्धा और निस्वार्थ प्रेम। यह भजन, कीर्तन, प्रार्थना, पूजा और सेवा जैसे अभ्यासों के माध्यम से व्यक्त होता है। नारद भक्ति सूत्र में भक्ति को ‘परम प्रेम’ कहा गया है, जो व्यक्ति को अहंकार और सांसारिक मोह से मुक्त करता है। भक्ति योग नौ प्रकार के भक्ति मार्गों श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है।
आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के अनुसार, “भक्ति योग प्रेम और समर्पण की वह शक्ति है, जो मन को शांत और हृदय को करुणा से भर देती है।”
कर्म योग निस्वार्थ कर्म और कर्तव्य पर केंद्रित है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया कर्म योग का उपदेश, “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” (तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं) इसके मूल सिद्धांत को रेखांकित करता है।
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