भारत ने दुर्लभ खनिजों (Rare Earth Elements – REEs) की खोज के क्षेत्र में एक नया अध्याय शुरू किया है। देशभर की कोयला खदानों में अब अपशिष्ट सामग्री — जैसे ओवरबर्डन, डंप, टेलिंग और रिजेक्ट्स — से महत्वपूर्ण खनिजों की जांच अनिवार्य कर दी गई है। इस पहल का मकसद खनिज अपशिष्ट से संभावित रूप से उपयोगी तत्वों की पहचान कर उत्पादन बढ़ाना और आयात पर निर्भरता कम करना है।
यह निर्णय नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (NCMM) के तहत लिया गया है, जो भारत को महत्वपूर्ण खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहा है। सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) के चेयरमैन और एमडी एन. बालराम ने बताया कि सरकारी गैर-लौह धातु प्रौद्योगिकी विकास केंद्र (NFTDC) के अध्ययन में तेलंगाना की सतुपल्ली और रामगुंडम खदानों में हर 15 टन मिट्टी में 1 किलोग्राम स्कैंडियम और स्ट्रोंशियम पाया गया है।
इन दोनों तत्वों की आपूर्ति अगस्त से शुरू होगी। स्कैंडियम का उपयोग विमानों के कलपुर्जों, फ्यूल सेल्स और हाई-परफॉर्मेंस स्पोर्ट्स उत्पादों में होता है। स्ट्रोंशियम का प्रयोग मिश्रधातुओं, मैग्नेट, चिकित्सा उपकरणों, और वैक्यूम सिस्टम में होता है। चीन फिलहाल वैश्विक रेयर अर्थ मिनिरल्स (REE) उत्पादन का 60% और प्रोसेसिंग का 90% हिस्सा नियंत्रित करता है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि चीन द्वारा REE निर्यात पर रोक दुनिया के लिए एक “वेक-अप कॉल” है। भारत अब ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और चिली जैसे वैकल्पिक स्रोतों पर विचार कर रहा है।
इस महीने की शुरुआत में कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने भारी उद्योग मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी, परमाणु ऊर्जा, स्टील और वाणिज्य मंत्रालयों के अधिकारियों के साथ बैठक की। इसमें REE आपूर्ति श्रृंखला की सुरक्षा और खनन से लेकर रिफाइनिंग तक की वैल्यू चेन को मज़बूत करने पर चर्चा हुई।
भारत में पहले क्वार्ट्ज, फेल्सपार और मिका जैसे खनिजों को माइनर मिनरल की श्रेणी में रखा जाता था, जिससे इनके साथ पाए जाने वाले महत्वपूर्ण खनिजों की रिपोर्टिंग और निष्कर्षण नहीं होता था। अब इन्हें मेजर मिनरल की सूची में डाल दिया गया है, जिससे उनके साथ पाए जाने वाले स्कैंडियम, टाइटेनियम, ज़िरकोनियम जैसे तत्वों की भी जांच हो सकेगी।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास दुनिया के एक-तिहाई सैंड मिनरल डिपॉज़िट हैं, जिनका उपयोग REEs के लिए किया जा सकता है। भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण के अनुसार, भारत के पास 6.9 मिलियन टन REE भंडार है — यह चीन (44 मिलियन टन) और ब्राजील के बाद तीसरा सबसे बड़ा है। सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी IREL (Indian Rare Earths Ltd) के माध्यम से भारत प्रोसेसिंग और प्रोडक्शन क्षमता को बढ़ाने की योजना बना रहा है। इसके साथ ही सरकार सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल के तहत रीसाइक्लिंग और पुनर्प्रयोग पर भी जोर दे रही है।
कोयला खदानों के ‘कचरे’ से निकलते दुर्लभ खनिज अब भारत की रणनीतिक आवश्यकता बनते जा रहे हैं। यह पहल भारत को न केवल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला संकट से सुरक्षित करेगी, बल्कि देश की विनिर्माण, रक्षा और उच्च तकनीकी उद्योगों को भी मजबूत बनाएगी।
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