भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बहुप्रतीक्षित बैठक सोमवार(7 अप्रैल) से शुरू हो गई है। तीन दिवसीय यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब देश आर्थिक स्थिरता और विकास के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। इस बैठक के फैसलों की घोषणा बुधवार, 9 अप्रैल को आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा करेंगे। बाजार, उद्योग और आम जनता की निगाहें रेपो रेट में संभावित कटौती और आने वाले महीनों में महंगाई व विकास दर के संकेतों पर टिकी हैं।
एसबीआई रिसर्च की ताजा रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि आरबीआई इस बैठक में रेपो रेट में 25 आधार अंक (bps) की कटौती कर सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2026 तक कुल 100 आधार अंकों की कटौती की संभावना है, जिससे कर्ज की ब्याज दरें घट सकती हैं और बाजार में तरलता बढ़ सकती है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में खुदरा महंगाई दर घटकर 3.8% तक पहुंच सकती है, जबकि पूरे वित्त वर्ष में यह औसतन 4.6% रह सकती है। वहीं, 2025-26 में खुदरा महंगाई दर 3.9% से 4.0% के बीच रहने का अनुमान है। हालाँकि, सितंबर-अक्टूबर के बाद महंगाई में दोबारा तेजी आने की आशंका जताई गई है, विशेष रूप से वैश्विक व्यापार परिस्थितियों के कारण।
महंगाई के साथ-साथ ग्रोथ रेट पर भी आरबीआई की नीति का असर देखने को मिलेगा। अगर ब्याज दरों में कटौती होती है, तो इससे निवेश और खपत को प्रोत्साहन मिल सकता है, जो आर्थिक विकास को गति देने में सहायक होगा। विश्लेषकों का मानना है कि यह नीति समीक्षा मौद्रिक स्थिरता बनाए रखने और विकास दर को मजबूत करने के बीच संतुलन साधने की एक कोशिश होगी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वित्त वर्ष 2025-26 में भारतीय अर्थव्यवस्था तरलता अधिशेष की स्थिति में रह सकती है। इसमें ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO), आरबीआई का लाभांश ट्रांसफर और संभावित 25-30 अरब डॉलर के बैलेंस ऑफ पेमेंट सरप्लस जैसे कारक शामिल हैं।
अब सबकी निगाहें बुधवार को गवर्नर मल्होत्रा की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर हैं, जहाँ यह स्पष्ट होगा कि आरबीआई अगली तिमाहियों में किस आर्थिक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ेगा। यह फैसला केवल बाजारों ही नहीं, बल्कि घरेलू उपभोक्ताओं और निवेशकों के लिए भी अहम दिशा तय करेगा।
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