उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले से एक बड़ा सुरक्षा मामला सामने आया है। थाना नौहझील क्षेत्र में पुलिस और खुफिया एजेंसियों की संयुक्त कार्रवाई में 90 बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा गया है, जो वर्षों से पहचान छुपाकर देश में रह रहे थे। इनमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल हैं। ये सभी लोग ईंट-भट्ठों पर मजदूरी कर जीवनयापन कर रहे थे।
गिरफ्तारी का यह मामला तब उजागर हुआ जब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्लोक कुमार के निर्देश पर नौहझील क्षेत्र में ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों का सत्यापन अभियान शुरू किया गया। शुक्रवार (16 मई) को इस अभियान के दौरान खाजपुर स्थित मोदी ईंट-भट्ठे की झुग्गियों में कुछ संदिग्ध मजदूरों पर अधिकारियों की नजर पड़ी। जब इनसे पूछताछ की गई तो इन्होंने अपना मूल स्थान बंगाल बताया, मगर ठोस जानकारी नहीं दे सके। पुलिस की सख्ती के बाद उन्होंने खुद को बांग्लादेशी मुस्लिम नागरिक स्वीकार कर लिया।
इसके बाद पुलिस ने पास के एक अन्य भट्ठे—आरपीएस ईंट उद्योग—पर दबिश दी, जहां उनके और साथी काम कर रहे थे। कुल मिलाकर पुलिस ने दो भट्ठों से 35 पुरुष, 27 महिलाएं और 28 बच्चों को हिरासत में लिया।
पुलिस जांच में सामने आया कि ये लोग 10 से 15 साल पहले भारत में घुसे थे और हरियाणा, नोएडा, दिल्ली, अलीगढ़ जैसे क्षेत्रों में काम करते रहे। पिछले छह-सात महीनों से वे मथुरा के भट्ठों पर ईंट-पताई का काम कर रहे थे। एसएसपी श्लोक कुमार ने बताया कि इन अवैध नागरिकों के खिलाफ केस दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी गई है और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को भी इसकी सूचना दे दी गई है।
यह घटना न केवल स्थानीय सुरक्षा को लेकर सवाल उठाती है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अवैध घुसपैठ के खतरे को भी उजागर करती है। केंद्र सरकार लंबे समय से देशभर में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान और निष्कासन को लेकर अभियान चला रही है। अनुमान है कि बिहार, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक फर्जी पहचान के सहारे रह रहे हैं।
मथुरा की यह कार्रवाई इस बात की ताजा मिसाल है कि कैसे दशकों से ये घुसपैठिए हमारे सिस्टम में छिपे रह रहे हैं। अब देखना यह है कि इस कार्रवाई के बाद प्रशासन कितनी तेजी से और कितनी गहराई में जांच को आगे बढ़ाता है और क्या इन नागरिकों को उनके देश वापस भेजने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाता है।
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