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Friday, December 5, 2025
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वसई-विरार अवैध निर्माण घोटाला:ईडी ने मारे 16 ठिकानों पर छापे !

60 एकड़ जमीन पर बने 41 अवैध बिल्डिंग्स की जांच तेज!

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प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मंगलवार को वसई-विरार महानगरपालिका (VVMC) क्षेत्र में 16 स्थानों पर एक साथ छापेमारी की। यह कार्रवाई 41 अवैध रिहायशी व व्यावसायिक इमारतों के निर्माण के पीछे काम कर रहे एक संगठित सिंडिकेट के खिलाफ की गई, जो करीब 60 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा कर अवैध निर्माण को अंजाम दे रहा था।

ईडी के अनुसार, यह जमीन मूल रूप से सीवेज ट्रीटमेंट और कचरा डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित थी, लेकिन फर्जी दस्तावेजों और झूठे नगर निगम स्वीकृति पत्रों के आधार पर इन पर इमारतें खड़ी कर दी गईं। ये निर्माण कार्य मुख्यतः 2010 से 2012 के बीच किए गए थे और ज़ोनिंग नियमों की सरेआम अवहेलना करते हुए बनाए गए थे। दिसंबर 2024 में बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर इन इमारतों को ढहा दिया गया।

सिंडिकेट ने ये अवैध संपत्तियां वसई-पूर्व के अग्रवाल नगर और नालासोपारा (पूर्व) जैसे क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को बेच दीं। छापों में ईडी ने वास्तुविदों, लायजन एजेंटों और VVMC के उन अधिकारियों के घर व दफ्तरों की तलाशी ली जो इन अवैध बिल्डिंग्स को वैध ठहराने में शामिल थे।

जांच एजेंसी का मानना है कि बिल्डरों, नगर निगम अधिकारियों और बिचौलियों के बीच मजबूत गठजोड़ ने इस अवैध निर्माण को संभव बनाया। ईडी सूत्रों के अनुसार, मामले में कई राजनेताओं और निगम के वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है।

यह इस मामले में दूसरी बड़ी कार्रवाई है। मई 2025 में की गई पहली छापेमारी में ईडी ने बहुजन विकास आघाड़ी (BVA) के नगरसेवक सीताराम गुप्ता, उनके भाई अरुण गुप्ता और रिश्तेदार अनिल गुप्ता सहित कई बिल्डरों व VVMC से जुड़े लोगों के ठिकानों पर छापा मारा था। उस दौरान VVMC के उपनगर नियोजन उपनिदेशक युमिगनु शिवा रेड्डी के घर से 8.6 करोड़ रुपये नकद, हीरे जड़े आभूषण और करीब 23.2 करोड़ रुपये मूल्य का सोना व चांदी बरामद किया गया था। इसके अलावा एक छुपी अलमारी से 45 लाख रुपये की बेहिसाबी नकदी भी जब्त की गई थी।

प्रवर्तन निदेशालय ने साफ किया है कि वह इस घोटाले में शामिल सभी सरकारी और गैर-सरकारी लोगों की भूमिका की गहन जांच करेगा। साथ ही इस बात की भी पड़ताल की जा रही है कि नगर निगम अधिकारियों ने कैसे इन अवैध भवनों को योजना के विरुद्ध पास किया और इतने वर्षों तक कार्रवाई से बचाए रखा। इस पूरे मामले ने वसई-विरार में सरकारी जमीनों पर कब्जे और नगर निकाय की मिलीभगत से हो रहे बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण की गंभीरता को उजागर कर दिया है।

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