इस्राइल और अमेरिका के हालिया हवाई हमलों के बाद ईरान की लड़ाकू क्षमता पर गंभीर सवाल उठे हैं। अब खबर है कि ईरान अपने पुराने और प्रतिबंधों से जर्जर हो चुके वायुसेना बेड़े को मजबूत करने के लिए चीन से आधुनिक J-10C फाइटर जेट खरीदने की योजना बना रहा है। यह वही विमान है जो पाकिस्तान ने हाल ही में भारत के खिलाफ उपयोग किया था और जो PL-15 सुपरसोनिक मिसाइलों से लैस है।
ईरान पहले रूस से Su-35 फाइटर जेट्स, Mi-28 हेलिकॉप्टर्स, S-400 एयर डिफेंस सिस्टम और ट्रेनर एयरक्राफ्ट लेने की योजना में था। लेकिन Washington Post की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक केवल Yak-130 ट्रेनर जेट्स की ही डिलीवरी हुई है। 2023 में हुए समझौते के तहत 50 Su-35 मिलने थे, पर केवल 4 ही मिले। इसके चलते अब ईरान ने करीब 40–60 मिलियन डॉलर प्रति यूनिट सस्ते J-10C की ओर रुख किया है।
ईरान ने करीब दो दशक पहले भी J-10 फाइटर जेट खरीदने की कोशिश की थी। 2015 में करीब 150 जेट्स के लिए बातचीत हुई थी, लेकिन चीन ने भुगतान विदेशी मुद्रा में मांगा जबकि ईरान तेल और गैस से भुगतान करना चाहता था। उस समय UN प्रतिबंधों के कारण डील रुक गई थी। मई 2025 की Forbes रिपोर्ट के अनुसार, अब ईरान 36 J-10C जेट्स खरीदना चाहता है।
J-10C, जिसे ‘Vigorous Dragon’ कहा जाता है, 4.5 जेनरेशन का मल्टीरोल फाइटर है। यह चीन की Chengdu Aerospace Corporation द्वारा विकसित किया गया है। इसमें AESA रडार और PL-15 मिसाइल जैसी आधुनिक तकनीक है। PL-15 एक लंबी दूरी की मिसाइल है जो कई पश्चिमी मिसाइलों से ज्यादा रेंज देती है और इसकी वजह से यह विमान BVR (Beyond Visual Range) एंगेजमेंट में खतरनाक साबित होता है।
The Military Balance 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के पास फिलहाल लगभग 150 फाइटर जेट हैं, जिनमें अधिकांश 1979 की इस्लामिक क्रांति से पहले के अमेरिकी विमान हैं जैसे कि F-4 फैंटम, F-5E/F टाइगर, F-14A टॉमकैट और कुछ सोवियत युग के MiG-29। इनमें से कई विमान उड़ने लायक भी नहीं हैं।
पिछले महीने जब इस्राइली और अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने ईरान की सीमाओं में प्रवेश कर हमला किया, तो ईरानी एयरफोर्स पूरी तरह निष्क्रिय रही। न तो विमान उड़ाए गए और न ही कोई इंटरसेप्शन किया गया। इससे ईरान की रक्षा प्रणाली और लड़ाकू क्षमता की कमजोरियां पूरी दुनिया के सामने आ गईं।
इस डील के जरिए ईरान और चीन के रक्षा संबंधों में गहराई आने की संभावना है। दूसरी ओर, रूस का ईरान से धीरे-धीरे दूरी बनाना भी सामने आ रहा है। यह सौदा अगर पूरा होता है तो यह मध्य-पूर्व के सामरिक समीकरणों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
अब देखना यह होगा कि क्या ईरान अपनी रक्षा क्षमताओं को फिर से मजबूत कर पाएगा या फिर एक बार फिर प्रतिबंधों और वित्तीय बाधाओं के कारण उसका यह प्रयास भी अधूरा रह जाएगा।
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