मध्य प्रदेश के ग्वालियर से एक सनसनीखेज साइबर फ्रॉड का मामला सामने आया है, जिसे राज्य ही नहीं, देश की अब तक की सबसे लंबी और सबसे बड़ी ‘डिजिटल अरेस्ट’ साइबर ठगी बताया जा रहा है। ठगों ने रामकृष्ण मिशन आश्रम, थाटीपुर के सचिव स्वामी सुप्रदिप्तानंद को पूरे 26 दिनों तक मानसिक दबाव और डिजिटल निगरानी में रखकर उनके बँक खातों से ₹2.52 करोड़ रुपए उड़ाए है।
इस धोखाधड़ी को 17 मार्च से 11 अप्रैल 2025 के बीच अंजाम दिया गया। पुलिस के अनुसार, ठगों ने खुद को नासिक पुलिस का अधिकारी बताकर व्हाट्सएप वीडियो कॉल के जरिए संपर्क किया और उन्हें बताया कि उनका नाम नरेश गोयल मनी लॉन्ड्रिंग केस में आया है। इसके बाद शुरू हुआ एक ऐसा डिजिटल शिकंजा, जिसमें फंसकर स्वामी न सिर्फ मानसिक तनाव झेलते रहे, बल्कि कई खातों में ठगों के कहे अनुसार कुल ₹2 करोड़ 52 लाख रुपए ट्रांसफर करते चले गए।
“आपके नाम से बीस करोड़ का ट्रांजैक्शन हुआ है, आप जांच में सहयोग करें, कुछ दस्तावेज भेजें और जमानत की रकम तीन दिन के लिए ट्रांसफर करें”, इस तरह के दावों से उन्हें डराया गया और लगातार ऑनलाइन निगरानी में रखा गया।
ठगों ने कई बार कहा कि वे सिर्फ औपचारिक प्रक्रिया पूरी करवा रहे हैं और तीन दिन बाद राशि वापस कर दी जाएगी। इस दौरान स्वामी को घर से बाहर न जाने, किसी से बात न करने और हर समय व्हाट्सएप पर उपलब्ध रहने का दबाव डाला गया — यही है साइबर क्रिमिनल्स की खतरनाक रणनीति, जिसे ‘डिजिटल अरेस्ट’ कहा जाता है।
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक निरंजन शर्मा ने बताया, “ठगों ने नासिक पुलिस अधिकारी बनकर रामकृष्ण आश्रम के सचिव से आधार कार्ड और अन्य निजी दस्तावेज मंगवाए, उन्हें डराया-धमकाया और विश्वास में लेकर कई खातों में बड़ी धनराशि ट्रांसफर करवा ली।”
इस हाई-प्रोफाइल मामले की शिकायत मिलने के बाद ग्वालियर साइबर क्राइम ब्रांच ने अज्ञात ठगों के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने बैंक खातों, कॉल डिटेल्स और आईपी ऐड्रेस की जांच शुरू कर दी है और जल्द ठगों की पहचान कर गिरफ्तारी की बात कही है।
गौरतलब है कि रामकृष्ण मिशन आश्रम एक प्रतिष्ठित संस्था है, जिसे देश-विदेश से दान और सहायता प्राप्त होती है। इस घटना ने न केवल साइबर सुरक्षा की पोल खोली है, बल्कि इस बात पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं कि ऐसे सम्मानित संस्थानों के प्रमुख भी अब डिजिटल अपराधियों के आसान शिकार बनते जा रहे हैं।
इस घटना ने पुलिस और साइबर विशेषज्ञों के सामने डिजिटल अरेस्ट जैसी नई साइबर क्राइम तकनीक की चुनौती भी खड़ी कर दी है, जिसमें शिकार को बंधक नहीं, बल्कि इंटरनेट और डर के जरिए पूरी तरह नियंत्रित किया जाता है।
ज्ञात हो की यदि कोई खुद को पुलिस या जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर फोन करे, दस्तावेज मांगे या पैसे ट्रांसफर करने को कहे — तो सतर्क रहें, बात की पुष्टि स्थानीय पुलिस से करें और किसी भी हालत में निजी जानकारी साझा न करें।
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