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Sunday, July 7, 2024
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शरद पवार पहले अपने गिरबां में झांके!

पुजारी का काम फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हैं- शरद पवार

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राहुल गांधी जब कांग्रेस के अध्यक्ष थे, तब वे लगातार बोलते थे। मंदिर वही बनाएंगे, लेकिन समय नहीं बताएंगे। हालांकि तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में कहा कि राहुल गांधी कान खोलकर सुनिए और तारीख नोट कर लीजिए। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण 1 जनवरी 2024 को बनकर तैयार होगा। इस बयान के आधार पर, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि पुजारियों द्वारा यह बताने की उम्मीद है कि राम मंदिर का निर्माण कब पूरा होगा। उन्होंने मजाक उड़ाया कि उनका काम फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हैं।

कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब कांग्रेस ने राम मंदिर निर्माण के लिए कई अड़ंगे खड़े किए। कांग्रेस ने इस मुद्दे को सालों तक दबा कर रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था। मंदिर का भूमिपूजन हो गया और काम तुरंत शुरू हो गया। राम मंदिर हिन्दुओं की आत्मीयता, भक्ति और गौरव का विषय है। यह करोड़ों भारतीयों की आस्था का विषय है।

इस मंदिर के हर पत्थर में हिंदू भावनाएं हैं। ये अयोध्या की मिट्टी में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास किया। शंख बजाए गए, देश में दिवाली मनाई गई। घर के बाहर लाइट जल रही थी। दिवाली समय से पहले मनाई गई। भूमि पूजा का सीधा प्रसारण सात समुद्र पार भर में देखा गया। जय श्रीराम के नारों से शहर गूंज उठा। वहीं जब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होगा, तो यह एक वैश्विक तीर्थ स्थल बन जाएगा।

राम मंदिर तो दूर साधारण मंदिर में भी नहीं जाने को लेकर आलोचना झेलने वाले शरद पवार राम मंदिर की बात करते हैं। गृह मंत्री द्वारा भक्तों के लिए मंदिर खोला जाएगा इसकी तारीख घोषित करने के बाद वे उन्हें पुजारी बता रहे हैं। पवार का नास्तिकता-नास्तिकता का भ्रम अब भी कायम है। एक मराठी बहुचर्चित कहावत है मानी नाही भाव आणि देवा माला पाव यानी आपके मन में भगवान के लिए प्यार नहीं और आप कहते हो भगवान प्रकट होकर दर्शन दो। इस तरह के वृत्तीवाले लोग चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद भगवान को याद करते हैं।

जब शरद पवार मंदिर जाते हैं, तो यह कहना पड़ता है कि वह भगवान को मानते हैं। सोशल मीडिया पर अपनी फोटो पोस्ट कर साबित करना चाहते है कि वो भगवान के भक्त है, नास्तिक नहीं। इसका अर्थ है कि हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ और होते है। पवार ने हनुमान चालीसा के मुद्दे पर टिप्पणी की। उन्होंने स्थिति संभाली कि यह मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं है। वहीं आलोचना होने के बाद, उन्हें संक्षेप में इसके बारे में बताना पड़ा।

शरद पवार द्वारा अमित शाह की तुलना एक पुजारी से करने के बाद विधायक अतुल भातखलकर ने ट्वीट किया। विधायक अतुल भातखलकर ने कहा कि जिस तरह से पवार ने क्रिकेट में हिस्सा लिया, जबकि शरद पवार 10 साल तक कृषि मंत्री रहे, वे आईपीएल के कार्यभार थे। पवार को कृषि मंत्री रहते हुए किसानों के मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए था। लेकिन उन्होंने क्रिकेट में दिलचस्पी दिखाई। पवार क्रिकेटर नहीं थे। उन्होंने साधारण गली क्रिकेट भी नहीं खेला होगा।

पवार मुंबई क्रिकेट संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। वह दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट संगठन बीसीसीआई के अध्यक्ष भी बने। हालांकि इतने पर ही पवार नहीं रुके एक समय के बाद वह सीधे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बन गए। जबकि पवार एक राजनीतिक नेता थे, उन्होंने कई क्रिकेट पदों पर कार्य किया। पवार को क्रिकेट के बारे में किस तरह का ज्ञान था? नियम यह है कि मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के सदस्य को मुंबई से होना चाहिए। अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए शरद पवार ने अपना पता तक नहीं बदला है।

शरद पवार के ससुर सदू शिंदे क्रिकेटर हैं, सोचनेवाली बात है कि पवार का क्रिकेट से क्या कनेक्शन? क्रिकेट के अलावा वह कुश्ती, कबड्डी, खोखो के अध्यक्ष भी बने। मौका मिलता तो वह पकड़ा पकड़ी के अध्यक्ष भी बन जाते। अगर पवार को खेल से इतना लगाव था तो उन्हें कृषि मंत्री की जगह खेल मंत्री का पद लेना चाहिए था। लेकिन उन्होंने इसमें कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन यह तो पवार ही हैं जो कहते हैं कि अमित शाह गृह मंत्री हैं या पुजारी। हालांकि पवार को अमित शाह को बोलने से पहले खुद को देखना चाहिए था। एक कहावत है जिसके खुद के घर सीसे के होते है वो दूसरों के घर में पत्थर नहीं मारते। यह कहावत शरद पवार पर लागू होता है।

खो-खो की अध्यक्षता शरद पवार के बाद अब अजित पवार को मिल गई है। वहीं रोहित पवार पर महाराष्ट्र क्रिकेट अध्यक्ष का भार आ गया है। वह महाराष्ट्र क्रिकेट के अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के लिए भी निर्विरोधी थे, लेकिन क्रिकेट में उनका योगदान वास्तव में क्या है, यह समझ में नहीं आता है। राजनीति की तरह भाई-भतीजावाद अब खेलों में भी दिखने लगा है। शरद पवार, उनके भतीजे और अब उनके पोते इस परंपरा को जारी रखे हुए हैं।

महाराष्ट्र क्रिकेट संघ का अध्यक्ष चुने जाने के बाद भारतीय राजनीतिज्ञ नीलेश राणे ने रोहित पवार पर निशाना साधा था। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि विधायक रोहित पवार के दादा क्रिकेट में चीयरलीडर्स लाए थे, देखते हैं यह महाशय क्या लाते हैं। उन्होंने क्रिकेट में पवार के योगदान की भी आलोचना की है। चर्चा है कि यह आलोचना पवार और उनके परिवार के क्रिकेट से रिश्ते को लेकर है। अमित शाह पर सवाल उठाते हुए शरद पवार को खुद से ये सवाल पूछना चाहिए कि उनका और उनके परिवार का क्रिकेट से क्या रिश्ता है।

मुंबई क्रिकेट संघ के वानखेड़े स्टेडियम के संग्रहालय का नाम शरद पवार के नाम पर रखा जाएगा। उनकी अध्यक्षता के दौरान इंडोर क्रिकेट अकादमी का नाम उनके नाम पर रखा गया था। शरद पवार ने कितने शतक लगाए हैं, कितने शिकार किए हैं। कौन-कौन से रिकॉर्ड इनके नाम पर है? इस म्यूजियम का नाम उनके नाम पर रखने का क्या आधार बनता है? उनकी जगह किसी और क्रिकेटर का नाम तय होता तो वो सही लगता। वहीं मुंबई क्रिकेट ने कहा कि पवार ने समीकरण बना लिया है। यानी अगर पवार में क्रिकेट के नियमों को बदलने की ताकत होती, तो वह पावर प्ले का नाम पवार प्ले रख सकते थे।

पवार के क्रिकेट से कनेक्शन के बारे में किसी ने सवाल नहीं पूछा। लेकिन कुछ साल पहले जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने वर्ल्ड कप जीता था। तब उनके कप्तान रिकी पोंटिंग ने पवार को चौंका दिया था। दरअसल रिकी पोंटिंग ने शरद पवार को धक्का मारा था। उनकी हरकत गलत थी लेकिन उस समय यह सवाल नहीं उठाया गया कि राजनेताओं का क्रिकेट से क्या लेना-देना है।

तो आज जब शरद पवार अमित शाह से सवाल पूछते हैं तो सवाल उठता है कि क्या उन्हें पूछने का अधिकार है। पवार को ध्यान देना चाहिए कि मंदिर का मुद्दा किसी पुजारी का नहीं बल्कि देश का मुद्दा है। हर भारतीय इसके बारे में बात कर रहा है। यह हर भारतीय के स्वाभिमान की बात है। राम मंदिर में क्रिकेट से घुलने-मिलने की राजनीति नहीं है। यह सोच कांग्रेस की हो सकती है। इसी के चलते आज वह सत्ता से बाहर हैं। जरूरी है कि शरद पवार को यह एहसास हो जाए कि वह संजय राउत नहीं हैं।

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