यूपी में बीजेपी ने अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। यूपी के चुनाव प्रभारी और केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने इसकी औपचारिक घोषणा भी कर दी है, पर निषाद पार्टी कितने सीटों पर लड़ेगी इसका खुलासा अभी नहीं हो पाया है। इस मौके पर प्रधान और यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के साथ निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद भी मौजूद थे। केंद्रीय शिक्षा मंत्री और यूपी बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान यूपी में बीजेपी की जीत का खाका तैयार करने के लिए तीन दिवसीय दौरे पर रहे। चुनाव प्रभारी के रूप में प्रधान का यह पहला दौरा रहा।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का गठबंधन अपनादल (एस) और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी भारतीय सुहेलदेव पार्टी से हुआ था। बीजेपी के इस सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला हिट हुआ था और 300 से ज्यादा सीटें जीतने मे वह कामयाब हुई थी, पर ये गठजोड़ साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद टूट गया। यूपी में राजभर समाज की आबादी 3 फीसदी कही जाती है। वहीं दूसरी ओऱ निषाद समुदाय का पूर्वांचल में बड़ा वोट बैंक हैं, निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड आदि उप जातियां जो निषाद समाज का हिस्सा हैं। उन्हें साधने की कोशिश बीजेपी द्वारा की गई है। भाजपा का यह गठबंधन भारतीय सुहेलदेव पार्टी के किनारा होने से उसकी भरपाई करेगा,साथ ही निषाद समाज का यूपी में कई सीटों पर जनाधार है,जिसकी वजह से भाजपा औऱ अपना दल (एस) और निषाद पार्टी इस गठबंधन को फायदा होगा। एकमुश्त वोट मिलने से भाजपा सहयोगी दलों को बड़ी मजबूती मिलेगी।
यूपी के 20 लोकसभा और 60 विधानसभा सीटों पर निषाद वोटरों की आबादी निर्णायक है। इसलिए निषाद पार्टी को साथ लाकर बीजेपी ने निषाद समाज में पकड़ मज़बूत करने की कोशिश की है। बीजेपी निषाद का मत संजय निषाद को चुनाव लड़ाकर साल 2019 में प्रयोग कर चुकी है। बीजेपी का ये प्रयोग हिट हुआ था और संजय निषाद संत कबीर नगर से चुनाव जीते थे, इसलिए साल 2022 में समीकरण हिट हो इसलिए औपचारिक घोषणा कर दी गई है।
यूपी के कई जिले जैसे गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद ,फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर में निषाद वोटरों की तादाद अच्छी है। ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद दोनों ही पूर्वांचल और अतिपिछड़ी जाति से हैं। इसलिए बीजेपी संजय निषाद को राजभर का विकल्प मानकर राजनीतिक समीकरण को मज़बूत करने की फिराक में है। कुल मिलाकर भाजपा का यह गठजोड़ मजबूत साबित होता दिखाई दे रहा है। इन दोनों दलों के साथ भाजपा यूपी की ज्यादा सीटें जीतने में सफल हो सकती है।