प्रशांत कारुलकर
उत्तराखंड में 12 नवंबर को टनल के ढहने के बाद शुरू हुआ बचाव अभियान कठिनाई से भरा था। 41 फंसे हुए मजदूरों को बचाने के लिए दिन-रात काम किया गया। इस अभियान में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन टीम ने हार नहीं मानी और आखिरकार सभी मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
उत्तराखंड में एक सुरंग के निर्माणाधीन हिस्से के ढह जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने स्थिति को संभालने और बचाव कार्यों में तेजी लाने के लिए अथक प्रयास किए। हालांकि, पीएमओ के इन प्रयासों को मीडिया में पर्याप्त कवरेज नहीं मिली, और आम जनता के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि सरकार इस त्रासदी से निपटने के लिए प्रतिबद्ध थी।
सुरंग हादसे के तुरंत बाद, प्रधानमंत्री मोदी जी के आदेशों पर पीएमओ ने एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया ताकि स्थिति की निगरानी की जा सके और बचाव अभियान में समन्वय किया जा सके। समिति ने नियमित रूप से बैठक की और बचाव दलों को आवश्यक सहायता प्रदान की।
पीएमओ के अधिकारियों ने भी हादसे के स्थल का दौरा किया और प्रभावित श्रमिकों से मुलाकात की। उन्होंने श्रमिकों को हर संभव मदद का आश्वासन दिया और उनके परिवारों को हर संभव सहायता प्रदान करने का संकल्प लिया।
पीएमओ ने यह सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाए कि बचाव अभियान के दौरान कोई कमी न रहे। उन्होंने आवश्यक उपकरण और मशीनरी उपलब्ध कराई और बचाव दलों को प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान की।
पीएमओ के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप, सुरंग में फंसे श्रमिकों को बचाने में सफलता मिली। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी, और यह पीएमओ के समर्पण और प्रतिबद्धता का सबूत है।
पीएमओ ने इस त्रासदी से निपटने के लिए जो कुछ भी किया, वह सराहनीय है, और उसने हमें दिखाया कि मोदी सरकार अपने नागरिकों के लिए कितनी परवाह करती है। पीएमओ के इस प्रयास से हमें यह भी पता चलता है कि किसी भी संकट की स्थिति में मोदी सरकार हमेशा हमारे साथ है और हमारी मदद के लिए तैयार है। हमें सरकार पर भरोसा रखना चाहिए और उनके प्रयासों में सहयोग करना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के साथ साथ इस अभियान की सफलता के पीछे कई अज्ञात नायकों का योगदान रहा है। इनमें से कुछ ऐसे लोग हैं जो सीधे बचाव कार्य में शामिल नहीं थे, लेकिन उनकी भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं थी। इन अज्ञात नायकों के योगदान के बिना, उत्तराखंड टनल ढहने के बाद बचाव अभियान इतना सफल नहीं हो पाता। उनकी समर्पण भावना और कड़ी मेहनत ने 41 मजदूरों की जान बचाई।
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