ममता बनर्जी का “खड़गे खेला” गहरा राज!

ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम पीएम पद के लिए सामने कर कई बहस को जन्म दे दी हैं। इसके बारे में जो बकुछ भी कहे लेकिन ममता ने खड़गे का नाम जो सोचकर आगे किये है इसके पीछे कोई गहरा राज है।

ममता बनर्जी का “खड़गे खेला” गहरा राज!

ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम पीएम पद के लिए सामने कर कई बहस को जन्म दे दी हैं। मगर एक बात अभी भी अनुत्तर है कि जो दो नेता पीएम पद के लिए दावेदार थे वे खड़गे के नाम का प्रस्ताव और समर्थन क्यों किया। यह सवाल सभी के जेहन में उठ रहे है। भले ममता बनर्जी अपने पक्ष में जो भी दलील दें, लेकिन यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है।

 ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम पीएम पद के लिए आगे करके कुछ भी नया नहीं किया है। दो माह पहले कांग्रेस नेता शशि थरूर ने खड़गे का नाम पीएम पद के लिए उछाला था।  17 अक्टूबर 2023 को शशि थरूर ने केरल में एक कार्यक्रम में कहा था कि कांग्रेस की ओर से इंडिया गठबंधन के लिए राहुल गांधी के अलावा खड़गे का नाम पीएम पद के लिए आगे किया जा सकता है। 

 सबसे बड़ा सवाल यही है कि ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम क्यों उछला। इसके अलावा दूसरा सवाल यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ममता बनर्जी के प्रस्ताव का समर्थन क्यों किया ? ये दोनों नेता इंडिया गठबंधन की बैठक से पहले मिले थे। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या ममता बनर्जी और केजरीवाल में कोई राजनीति खिचड़ी पकी। जिसका नतीजा सबके सामने है। एक और सवाल उठ रहा है। जब कांग्रेस विपक्षी दलों की पहली मीटिंग के लिए आनाकानी कर रही थी, तब ममता बनर्जी ने ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पटना में बैठक रखने को कहा था। जो विपक्ष को एकजुट करने के लिए बिहार और दिल्ली की दूरी नाप चुके हैं। मगर, 19 दिसंबर को ममता बनर्जी और नीतीश कुमार आसपास ही बैठे थे,पर ममता बनर्जी ने जिस तरह से खड़गे का नाम पीएम पद के लिए आगे किया इसका रहस्य गहरा गया है।

 कहा जाता है कि राजनीति में जो बात नहीं कही जाती है, वह होती है और जो कही जाती है वह नहीं होती है। तो एक अनुमान यह भी लगाया जा सकता है कि ” न खेलेंगे, न खेलने देंगे। क्योंकि, ममता बनर्जी “खेला होबे” बोलती रहती हैं। 2021 में हुए बंगाल विधानसभा चुनाव में यह शब्द खूब सुर्खियां बटोरा था। बीजेपी और टीएमसी के नेताओं ने खूब खेल किया था और ममता बनर्जी हार गई थी। जिसकी टीस ममता बनर्जी को खूब सालती रही। ममता को उनके ही कभी सहयोगी रहे  शुभेन्दू अधिकारी ने नंदीग्राम विधानसभा सीट से हराया था। यह उस ममता की कहानी है जो बाद में पीएम मोदी को चुनौती देने लगी थीं और दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए उन्होंने बंगाली छोड़ हिंदी में भाषण देने लगी थी। कांग्रेस नेइसमें अड़ंगा लगा दिया था। लेकिन, ऐसा लगता है कि ममता ने वर्तमान राजनीति परिस्थिति को भांपते हुए खड़गे का खेल खेला है। यानी इंडिया गठबन्धन में खेला हो गया है। यह तो रही ममता बनर्जी की बात।

अब बात उस सवाल का कि आखिर ममता बनर्जी ने ऐसा क्यों किया। तो, भले यह कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी ने दलित कार्ड खेला है। लेकिन क्या उनके इस प्रस्ताव पर सभी दल सहमत होंगे? जैसा कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के नाराज होने की बातें सामने आ रही है। यानी खड़गे पर सहमति बनाना भी “ढेरी खीर है.” एक सवाल यह भी है कि क्या सभी दल खड़गे के नाम पर विपक्ष के उम्मीदवार को वोट दिला पाएंगे। याद रहे अगर इंडिया गठबंधन खड़गे को लोकसभा चुनाव के दौरान दलित कार्ड के रूप में उपयोग करेगा तो बीजेपी जगजीवन बाबू का नाम लेकर कांग्रेस पर हमला कर सकती है। जो कांग्रेस के लिए दुखती रग पर हाथ रखने जैसा होगा। तो ममता बनर्जी ने केवल एक “चाल” चली है। जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

यानी पीएम के रेस में रहने वाले राहुल गांधी, नीतीश कुमार सीधे हट गए। ममता बनर्जी को नीतीश कुमार से ज्यादा राहुल गांधी से खुन्नस है। जो वाम दलों की आजकल बात ज्यादा सुन रहे हैं। ममता बनर्जी का कांग्रेस से खुन्नस का एक और उदाहरण सामने आया है। उन्होंने कांग्रेस को यह भी सलाह दी है कि बनारस से पीएम मोदी के सामने प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ना चाहिए। अगर पार्टी ऐसा करती है तो इसे कांग्रेस और प्रियंका गांधी का आत्महत्या करार दिया जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि केजरीवाल ने खुद 2014 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और हार गए थे। तो क्या जब ममता बनर्जी और केजरीवाल की बैठक से पहले मुलाकात हुई तो दोनों ने इस मुद्दे पर सलाह मशविरा किया था क्या ?

दरअसल, केजरीवाल भी पीएम पद के दावेदार है। और वर्तमान में उनकी राजनीति कांग्रेस को बेदखल कर ही चमकी है। दिल्ली में कभी कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी, जिसे आम आदमी पार्टी ने हटाकर सत्ता पर काबिज है। पंजाब में भी वही हाल है यहां भी पहले कांग्रेस की सरकार थी,जिसे बेदखल कर आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई है। कुछ दिन पहले ही केजरीवाल ने इशारा किया था कि आप पंजाब की सभी 13 सीटों चुनाव लड़ेगी। उन्होंने पंजाब की जनता से लोकसभा की सभी सीटें जीताकर देने की अपील की थी।            

 राजनीति तौर पर कुछ और भी दलीलें दी जा रही है जैसे कि खड़गे दलित चेहरा होने के नाते वोट  दिलास सकते है। यह भी कहा जा रहा है कि दलित वोट कांग्रेस की ओर रिमूव कर सकता है।दूसरा, खड़गे मिलनसार और बेदाग़ है। उन पर भ्र्ष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। साथ ही उनके पास संगठन को मजबूत करने की क्षमता है। तीसरा वे दक्षिण से आते है। कहा जा रहा है कि विपक्ष दक्षिण की लगभग 130 सीटों पर उनके चेहरे से चमत्कार करना चाहता है। पिछले चुनाव में बीजेपी ने इसमें से 30 सीटें जीती थी। विपक्ष खड़गे को आगे कर बीजेपी को पछाड़ सकता है। वहीं, गांधी परिवार ममता बनर्जी सहित लगभग सभी दलों के नेताओं के निशाने पर रहा है। लेकिन खड़गे का गैर गांधी चेहरा विपक्ष को ज्यादा सीटें जिताने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

 मगर क्या बीजेपी के आक्रामक चुनाव प्रचार और राष्ट्रवाद के सामने खड़गे का चेहरा टिक पायेगा। क्या लोकसभा चुनाव जीतने के लिए दलित चेहरा होना ही काफी है? बहरहाल, ममता बनर्जी जो सोचकर खड़गे का नाम आगे किये हों, लेकिन यह 100 फीसदी सही है कि इसके पीछे गहरा राज है। और वह कौन सा राज है ?  

 

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