महाराष्ट्र के प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर में बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई सामने आई है। मंदिर समिति ने 167 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है, जिनमें से 114 मुस्लिम समुदाय से हैं। यह कदम भाजपा आध्यात्मिक मोर्चा के प्रमुख आचार्य तुषार भोसले की तीव्र चेतावनी और आंदोलन की घोषणा के बाद लिया गया है। इस घटना ने न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक हलकों में भी गंभीर बहस छेड़ दी है।
आचार्य तुषार भोसले ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “शनि शिंगणापुर जैसे हिंदू आस्था के केंद्र में मुस्लिम कर्मचारियों की मौजूदगी हिंदू धर्म के मूल भावनाओं का अपमान है।” उन्होंने कहा कि 14 जून को इस मुद्दे को लेकर हिंदू समाज द्वारा एक विशाल मार्च निकाला गया, जिसके दबाव में मंदिर प्रशासन को झुकना पड़ा।
भोसले ने इसे हिंदू समाज की एकता की जीत बताते हुए कहा, “मैं महाराष्ट्र के अन्य मंदिरों से भी अनुरोध करता हूं कि वह अपने यहां ऐसी लिप्तता को तुरंत समाप्त करें। यह सहन नहीं किया जाएगा कि हिंदू धार्मिक स्थलों में किसी अन्य धर्म के लोग कार्यरत हों।”
इस मामले में जब मंदिर ट्रस्ट की ओर से प्रतिक्रिया आई, तो उसमें कहा गया कि यह धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि कर्मचारियों की लापरवाही, अनुपस्थिति और नियमों की अनदेखी के चलते की गई प्रशासनिक कार्रवाई है। समिति के अनुसार, “मंदिर में कार्यरत 2,464 कर्मचारियों में से 167 को सेवा से मुक्त किया गया, जिनमें 114 मुस्लिम कर्मचारी हैं। यह फैसला मंदिर नियमों का पालन न करने, नियमित अनुपस्थिति और अन्य अनुशासनात्मक आधारों पर लिया गया है।”
समिति ने यह भी बताया कि पांच साल पहले भी ऐसी ही कार्रवाई में 105 कर्मचारियों को हटाया गया था, जो स्पष्ट करता है कि यह केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि कार्य व्यवहार से जुड़ा मामला है। यह घटना ऐसे समय पर सामने आई है जब देश में धार्मिक पहचान और धार्मिक स्थलों में कार्यरत कर्मचारियों की पृष्ठभूमि को लेकर संवेदनशील बहस चल रही है। मंदिरों में कर्मचारियों की नियुक्ति को धर्म से जोड़ना और इस पर आंदोलन करना एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा बनता जा रहा है।
जहां एक ओर कुछ समूह इस कार्रवाई को ‘धार्मिक पवित्रता की रक्षा’ मान रहे हैं, वहीं कई मानवाधिकार और सामाजिक संगठन इस घटना को धार्मिक भेदभाव और असंविधानिक कृत्य बता रहे हैं।
शनि शिंगणापुर मंदिर की यह करवाई धार्मिक-राजकीय परिपेक्ष्य में उथल-पुथल निर्माण करने वाली है। यह मामला केवल कर्मचारियों की बर्खास्तगी तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि धर्म, राजनीति और सामाजिक ताने-बाने के गहरे प्रश्नों को जन्म दे चुका है। अब देखना होगा कि इस पर राज्य सरकार और अन्य धार्मिक संस्थान किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं।
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