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शेख हसीना के पतन के बाद से बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा में लगभग 300 लोग मारे गए!

देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी का नाम भी इन घटनाओं में सामने आया है।

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बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद बीते एक वर्ष में राजनीतिक हिंसा में करीब 300 लोगों की मौत हुई है। देश के प्रमुख मानवाधिकार संगठन ओधिकारने रविवार को जारी अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी। रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2024 से सितंबर 2025 के बीच राजनीतिक दलों के बीच हुई झड़पों में कम से कम 281 लोग मारे गए, जबकि 40 संदिग्ध अपराधियों की कथित तौर पर फर्जी मुठभेड़ों में हत्या और 153 भीड़ हिंसा (लिंचिंग) की घटनाएं दर्ज की गईं।

ओधिकार के निदेशक ए.एस.एम. नासिरुद्दीन इलान ने कहा कि हसीना के सत्ता छोड़ने के बाद मानवाधिकार स्थिति में कुछ सुधार जरूर हुआ है, लेकिन कानून-व्यवस्था और सुरक्षा एजेंसियों में प्रणालीगत खामियां अब भी बनी हुई हैं। उन्होंने कहा, “कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अब भी जवाबदेह नहीं ठहराया जा रहा है।”

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना, जिन्होंने 15 से अधिक वर्षों तक बांग्लादेश पर शासन किया, को 2024 में छात्र-नेतृत्व वाले जनआंदोलन के चलते देश छोड़कर भारत भागना पड़ा। छात्रों ने उन पर तानाशाही रवैये और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। हसीना के पद से हटने के बाद देश की राजनीति में भारी उथल-पुथल आई, लेकिन साथ ही एक सत्ता शून्य भी पैदा हो गया, जिसने गुटीय और भीड़ हिंसा को बढ़ावा दिया।

इलान ने बताया कि “हसीना काल में जिस तरह के फर्जी मुठभेड़ या जबरन गुमशुदगी की घटनाएं होती थीं, वे अब नहीं दिखतीं, लेकिन हिरासत में मौत, रिश्वतखोरी और पीड़ितों के उत्पीड़न जैसी घटनाएं जारी हैं।” उन्होंने कहा कि कई निर्दोष लोग केवल अब प्रतिबंधित हो चुकी आवामी लीग से जुड़े होने के शक में उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।

ओधिकार की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि बीते एक साल में राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों द्वारा वसूली (एक्सटॉर्शन) के कई मामले सामने आए हैं। इसमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP), जो फरवरी 2026 के चुनावों में प्रमुख दावेदार मानी जा रही है, और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट मूवमेंट, जिसने हसीना के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की थी, दोनों शामिल हैं। देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी का नाम भी इन घटनाओं में सामने आया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि “पुलिस बलों को राजनीतिक हित साधने के लिए इस्तेमाल किया गया, और उन्हें दंड से छूट मिली, जिसके कारण वे विपक्षी कार्यकर्ताओं की हत्या और यातना में शामिल रहे।” रिपोर्ट के अनुसार, हसीना के सत्ता छोड़ने के बाद पुलिस काफी हद तक निष्क्रिय और मनोबलहीन हो गई है।

अब तक बांग्लादेश की अंतरिम सरकार या किसी प्रमुख राजनीतिक दल ने ओधिकार की इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया नहीं दी है।

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