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UN सम्मेलन में भारत ने पाकिस्तान को लताड़ा: “आतंकवाद फैलाकर दूसरों पर दोष न मढ़े”

संधि की मूल भावना 'सद्भावना और मैत्री' की रही है, और इसका सम्मान करना आवश्यक है।

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सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की हालिया टिप्पणियों पर भारत ने तीखा पलटवार किया है। ताजिकिस्तान में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के ग्लेशियर संरक्षण सम्मेलन में भारत ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वह बार-बार सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देकर खुद ही संधि का उल्लंघन कर रहा है और इसके लिए भारत को दोषी ठहराने की कोशिश कर रहा है।

केंद्रीय मंत्री किर्ति वर्धन सिंह ने शनिवार (31 मई) को सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “हम पाकिस्तान के इस प्रयास से स्तब्ध हैं कि उसने इस मंच का दुरुपयोग कर गैर-संबंधित मुद्दों को उठाया। हम इस तरह की कोशिशों की कड़ी निंदा करते हैं।”

भारत ने स्पष्ट किया कि सिंधु जल संधि के अमल में सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान की ओर से निरंतर होने वाला सीमा पार आतंकवाद है। केंद्रीय मंत्री ने कहा, “पाकिस्तान खुद इस संधि का उल्लंघन कर रहा है और भारत पर दोष मढ़ रहा है। संधि की मूल भावना ‘सद्भावना और मैत्री’ की रही है, और इसका सम्मान करना आवश्यक है।”

उन्होंने आगे कहा कि 1960 में हुई संधि के बाद से परिस्थितियों में मौलिक परिवर्तन आ चुका है — जिनमें जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या में बढ़ोतरी, तकनीकी प्रगति और पाकिस्तान की ओर से जारी आतंकी गतिविधियां शामिल हैं। इन बदलावों को देखते हुए संधि की शर्तों की समीक्षा आवश्यक है।

शुक्रवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने सम्मेलन में भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने को “पानी का हथियारीकरण (weaponisation of water)” बताया था। उन्होंने कहा था,”भारत का यह एकतरफा और अवैध निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है। करोड़ों लोगों का जीवन राजनीति के संकीर्ण लाभ के लिए बंधक नहीं बनाया जा सकता। पाकिस्तान इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा।”

भारत ने यह संधि निलंबित करने का निर्णय 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद लिया था, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी। भारत ने इस हमले के पीछे पाकिस्तान-स्थित आतंकियों का हाथ बताया और उसके खिलाफ कई दंडात्मक कदम उठाए, जिनमें यह संधि भी शामिल थी।

भारत साफ़ संदेश दिया है— “पाकिस्तान पहले खुद संधि के मूल्यों का उल्लंघन करना बंद करे और आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाए, तब ही किसी संधि की बात हो सकती है।” अब यह देखना होगा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस द्विपक्षीय विवाद को किस नजरिए से देखता है, खासकर तब जब दोनों देशों के संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं।

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