विदेश मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, “भारत तेल और गैस का एक महत्वपूर्ण आयातक है। उतार-चढ़ाव भरे एनर्जी मार्केट में भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना हमारी निरंतर प्राथमिकता रही है। हमारी आयात नीतियां पूरी तरह इसी उद्देश्य से निर्देशित होती हैं।
बयान में आगे कहा गया, “जहां तक अमेरिका का सवाल है, हम कई वर्षों से अपनी ऊर्जा खरीद का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले दशक में इसमें लगातार प्रगति हुई है। वर्तमान प्रशासन ने भारत के साथ ऊर्जा सहयोग को गहरा करने में रुचि दिखाई है। इस पर चर्चा जारी है।”
इससे पहले, बुधवार को वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने कहा कि पिछले सात-आठ वर्षों में अमेरिका से ऊर्जा खरीद (मुख्यतः कच्चे तेल) 25 अरब डॉलर से घटकर लगभग 12-13 अरब डॉलर रह गई है। इसलिए, लगभग 12-15 अरब डॉलर की गुंजाइश है, जिसे हम रिफाइनरियों की संरचना की चिंता किए बिना खरीद सकते हैं।
उन्होंने बताया कि यह एक द्विपक्षीय प्रतिबद्धता है, और हमारी बातचीत में हमने बहुत सकारात्मक संकेत दिया है कि एक देश के रूप में भारत ऊर्जा आयात के मामले में अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाना चाहेगा। भारत जैसे बड़े खरीदार के लिए यह सबसे अच्छी रणनीति है।



