‘हैरी पॉटर’ सीरीज की जानी-मानी लेखिका जे.के. रोलिंग इस बार विवादों के केंद्र में हैं। वजह है एक ऐसा कानूनी मामला, जिसकी फंडिंग उन्होंने की और जिसका फैसला ब्रिटेन में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों पर गहरा प्रभाव पड़ने जा रहा है। रोलिंग ने सार्वजनिक रूप से पुष्टि की है कि उन्होंने “For Women Scotland” नामक संगठन को £70,000 की राशि दी, ताकि वह यूके सुप्रीम कोर्ट में एक कानूनी चुनौती लड़ सके। इस केस का नतीजा यह रहा कि कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटेन की Equality Act 2010 के तहत ट्रांस महिलाएं कानूनी रूप से “महिला” की परिभाषा में नहीं आतीं—कम से कम कुछ विशिष्ट संदर्भों में।
रोलिंग ने अपने बयान में कहा, “यह मामला पूरे यूके में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा करता है।” उनका यह बयान महिला अधिकारों की पैरवी के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन ट्रांस अधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार यह एक खतरनाक मिसाल है। उन्होंने इस फैसले को ट्रांस समुदाय के खिलाफ एक बड़ा झटका करार दिया है।
क्या है मामला?
“For Women Scotland” नामक संस्था ने इस बात को चुनौती दी थी कि क्या ट्रांस महिलाएं—भले ही वे कानूनन लिंग परिवर्तन कर चुकी हों—सरकारी नियुक्तियों, महिला कोटे या महिला-विशेष सेवाओं में “महिला” मानी जा सकती हैं। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि महिला शब्द का इस्तेमाल जैविक महिलाओं के लिए ही सीमित रखा जा सकता है।
इस फैसले के बाद ब्रिटेन में ट्रांस अधिकारों को लेकर बहस और तेज हो गई है। एक ओर रोलिंग जैसे प्रभावशाली लेखक इसे महिलाओं के अधिकारों की रक्षा बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर LGBTQ+ कार्यकर्ता इसे ट्रांस समुदाय के अधिकारों का हनन मानते हैं।
‘ब्रिजर्टन’ सीरीज़ की अभिनेत्री निकोला कॉफलन ने जे.के. रोलिंग के इस कदम के जवाब में ट्रांस समुदाय के समर्थन में मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने ‘Not A Phase’ नामक चैरिटी के लिए फंडरेज़िंग अभियान शुरू किया और कुछ ही दिनों में £70,000 से अधिक की राशि जुटाई—जो कि रोलिंग के दान के बराबर है। कॉफलन ने कहा, “ट्रांसजेंडर लोगों के अस्तित्व पर बहस नहीं होनी चाहिए।”
बता दें की जे.के. रोलिंग पहले भी ट्रांस मुद्दों पर अपने बयानों को लेकर विवादों में घिर चुकी हैं। उन्होंने कई बार सोशल मीडिया पर ट्रांस एक्टिविज़्म की आलोचना की है और इसे महिलाओं के अधिकारों के लिए खतरा बताया है। हालांकि, उनके आलोचक इसे ट्रांसफोबिया करार देते हैं।
ज्ञात हो की, ब्रिटेन में Equality Act 2010 महिलाओं और अन्य वंचित वर्गों की रक्षा के लिए बनाया गया था। जब इस कानून की मूल भावना को बदलने की कोशिश हो रही थी, तब कोर्ट का यह फैसला जरूरी था। ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की रक्षा कानून के अन्य प्रावधानों के तहत होती है—लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि महिलाओं की परिभाषा ही मिटा दी जाए।
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