इस विश्लेषण का आधार 13 जून की वह घटना है, जब इज़राइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया था। उस समय कच्चे तेल की कीमतों में 12-13% की तेज़ उछाल देखी गई और यह 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। लेकिन इसके बाद हमलों के बावजूद कीमतें वापस घटकर 75 डॉलर के करीब स्थिर हो गईं। विश्लेषकों का मानना है कि अगर पश्चिम एशिया में युद्धविराम होता है, तो ब्रेंट क्रूड की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ सकती हैं।
दूसरी ओर, देश में खुदरा मुद्रास्फीति (CPI) के मोर्चे पर राहत की खबर है। मई 2025 में हेडलाइन मुद्रास्फीति घटकर 2.8 प्रतिशत पर आ गई, जो कि हाल के वर्षों में एक बड़ी गिरावट मानी जा रही है। यह गिरावट मुख्यतः खाद्य मुद्रास्फीति में कमी के कारण आई है। लेकिन रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) ने कोर मुद्रास्फीति को लेकर चिंता जताई है।
कोर मुद्रास्फीति — जिसमें खाद्य और ईंधन को छोड़कर बाकी वस्तुएं शामिल होती हैं — बीते चार महीनों से 4 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। भले ही यह दशकीय औसत से कम है, लेकिन इसमें बनी स्थिर बढ़ोतरी नीति निर्माताओं के लिए चिंता का विषय हो सकती है। CRISIL की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर यह रुझान जारी रहा, तो यह हेडलाइन मुद्रास्फीति पर भी दबाव डाल सकता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि घरेलू स्तर पर सोने की कीमतें वैश्विक घटनाओं से अधिक प्रभावित हो रही हैं। हाल ही में आरबीआई द्वारा गोल्ड लोन पर लोन-टू-वैल्यू (LTV) अनुपात बढ़ाने और जोखिम प्रबंधन पर दिए निर्देशों के चलते, बाजार में कुछ संरचनात्मक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं।
इसके अलावा, कॉर्पोरेट पारदर्शिता के मोर्चे पर अनिल अग्रवाल की वेदांता ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दावा किया है कि कंपनी ने बीते 10 वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारों को लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपये का योगदान दिया है। सिर्फ वित्त वर्ष 2025 में ही वेदांता ने 55,349 करोड़ रुपये विभिन्न माध्यमों से भुगतान किए, जिनमें से सबसे बड़ा योगदान राजस्थान और ओडिशा से रहा।
इस सबके बीच, गुणवत्ता मानकों की दृष्टि से एक सकारात्मक खबर यह है कि भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश में 91% से अधिक खिलौने गुणवत्ता मानकों पर खरे उतरे हैं।
जहां एक ओर वैश्विक अस्थिरता के बावजूद ऊर्जा कीमतों में अपेक्षाकृत स्थिरता दिखाई दे रही है, वहीं घरेलू अर्थव्यवस्था के भीतर कोर मुद्रास्फीति जैसी सूक्ष्म चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आगामी महीनों में आरबीआई की मौद्रिक नीति और सरकार की राजकोषीय रणनीति इस असंतुलन को कैसे संभालती है, इस पर ही भारतीय उपभोक्ता और निवेशक की स्थिरता निर्भर करेगी।
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