जून में रूस से आयात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी: स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत ने पहले ही जून माह से रूस और अमेरिका से कच्चे तेल का आयात तेज कर दिया है। वैश्विक व्यापार विश्लेषक फर्म कैपलर के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने जून 2025 में रूस से 20–22 लाख बैरल प्रतिदिन की दर से कच्चे तेल की खरीद की, जो पिछले दो वर्षों में सबसे अधिक है।
मई 2025 में यह आंकड़ा करीब 11 लाख बैरल प्रतिदिन था,यानी मात्र एक महीने में लगभग दोगुना आयात दर्ज हुआ है।इससे स्पष्ट है कि भारत ने पश्चिम एशिया से संभावित आपूर्ति बाधाओं को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति तैयार की है।
खाड़ी देशों की निर्भरता में कमी: पारंपरिक रूप से भारत का अधिकतर कच्चा तेल इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत से आता रहा है। जून में इन देशों से भारत ने कुल मिलाकर 20 लाख बैरल प्रतिदिन का आयात किया। लेकिन यह आंकड़ा अब रूस से हुए आयात से कम है।
यह पहली बार है जब भारत ने खाड़ी देशों की तुलना में रूस से ज्यादा तेल मंगाया है। मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि भारत अब अपने कुल कच्चे तेल आयात का 40-44% रूस से प्राप्त कर रहा है, जबकि युद्ध से पहले यह हिस्सा मात्र 1% था।
होर्मुज जलडमरूमध्य बना नई चिंता का केंद्र: ईरान ने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका इस्राइल के साथ उसके युद्ध में सक्रिय रहता है, तो वह होर्मुज जलडमरूमध्य में व्यापारी जहाजों को निशाना बनाएगा। यह मार्ग भारत और एशिया के कई अन्य देशों के लिए ऊर्जा आयात की जीवनरेखा माना जाता है।
इसके अलावा, यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों द्वारा लाल सागर में जहाजों को निशाना बनाए जाने की आशंका भी बनी हुई है। ऐसे में भारत ने जोखिम को घटाने के लिए सप्लाई डाइवर्सिफिकेशन पर बल दिया है।
अमेरिका से भी बढ़ाया गया तेल आयात: रूस के साथ-साथ भारत ने जून में अमेरिका से भी 4.39 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से कच्चा तेल खरीदा है, जबकि यह आंकड़ा मई में 2.80 लाख बैरल प्रतिदिन था। हालांकि अमेरिकी तेल महंगा है, लेकिन रणनीतिक सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए भारत अब अमेरिका, लैटिन अमेरिकी देशों और अफ्रीका से भी आयात बढ़ा रहा है।
भारत की रणनीतिक तैयारी: भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है, हर दिन औसतन 51 लाख बैरल कच्चा तेल आयात करता है। इन आपूर्तियों से देश की रिफाइनरियों में पेट्रोल, डीजल और अन्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं। सरकार और रिफाइनिंग कंपनियां वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी बाधा से निपटने के लिए अब बहुस्तरीय रणनीति अपना रही हैं।
पश्चिम एशिया संकट के बावजूद तेल कीमतें काबू में, CRISIL चिंतित!
